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जैन न्याय में सप्तभंगी
१४३ लिए चतुष्प्रदेशी स्कन्ध, अस्तित्ववान् है, नहीं है और अवक्तव्य है।
(१९) चतुष्प्रदेशी स्कन्ध दो देश (सद्भाव पर्यायों) की अपेक्षा से अस्तित्ववान् है, एक देश (असद्भाव पर्यायों) की अपेक्षा से अस्तित्ववान् नहीं है और एक देश (तदुभय पर्यायों) को अपेक्षा से अवक्तव्य है । अतएव चतुष्प्रदेशी स्कन्ध अस्तित्ववान् है, नहीं है और अवक्तव्य है।। ___ इसी प्रकार पंच प्रदेशी स्कन्धों के सन्दर्भ में महावीर ने कुल २२ भंगों की संख्या प्रस्तुत की है । वे इस प्रकार हैं :(१) पंचप्रदेशी स्कन्ध स्व-स्वरूप की अपेक्षा से अस्तित्ववान् है ।
(२) पंचप्रदेशी स्कन्ध पर-स्वरूप की अपेक्षा से अस्तित्ववान् नहीं है।
(३) पंचप्रदेशी स्कन्ध तदुभय की अपेक्षा से अवक्तव्य है।
(४) पंचप्रदेशी स्कन्ध एक देश (सद्भाव पर्यायों) की अपेक्षा से अस्तित्ववान् है और एक देश ( असद्भाव पर्यायों) की अपेक्षा से अस्तित्ववान् नहीं है । इसलिए पंचप्रदेशी स्कन्ध अस्तित्ववान् है और नहीं है।
(५) पंचप्रदेशी स्कन्ध एक देश (सद्भाव पर्यायों) की अपेक्षा से अस्तित्ववान् है और अनेक देश (सद्भाव पर्यायों) की अपेक्षा से अस्तित्ववान् नहीं है । अतएव पंचप्रदेशी स्कन्ध अस्तित्ववान् है और नहीं है।।
(६) पंचप्रदेशी स्कन्ध अनेक देश (सद्भाव पर्यायों) की अपेक्षा से अस्तित्ववान है और एक देश (असद्भाव पर्यायों) की अपेक्षा से अस्तित्ववान् नहीं है अतः पंचप्रदेशी स्कन्ध अस्तित्ववान है और नहीं है।
(७) पंचप्रदेशी स्कन्ध दो या तीन देश (सद्भाव पर्यायों) की अपेक्षा से अस्तित्ववान् है और दो या तीन देश (असद्भाव पर्यायों) की अपेक्षा से अस्तित्ववान् नहीं है। इसलिए पंचप्रदेशी स्कन्ध अस्तित्ववान् है और नहीं है।
(८) पंचप्रदेशी स्कन्ध एक देश (सद्भाव पर्यायों) की अपेक्षा से अस्तित्ववान् है और एक देश (तदुभय) की अपेक्षा से अवक्तव्य है। अतएव पंचप्रदेशी स्कन्ध अस्तित्ववान् है और अवक्तव्य है।
(९) पंचप्रदेशी स्कन्ध एक देश (सद्भाव पर्यायों) की अपेक्षा से अस्तित्ववान् है और अनेक देश (तदुभय पर्यायों) की अपेक्षा से अवक्तव्य
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