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१४२ जैन तर्कशास्त्र के सप्तभंगी नय की आधुनिक व्याख्या __ (१०) चतुष्प्रदेशी स्कन्ध अनेक देश सद्भाव पर्यायों) की अपेक्षा से अस्तित्ववान् है और एक बैश (तदुभय पर्यायों) की अपेक्षा से अवक्तव्य है । अतएव चतुष्प्रदेशी स्कन्ध अस्तित्ववान् है और अवक्तव्य है।
(११) चतुष्प्रदेशी स्कन्ध दो देश (सद्भाव पर्यायों) की अपक्षा से अस्तित्ववान् है और दो देश (तदुभय पर्यायों) की अपेक्षा से अवक्तव्य है। अतः चतुष्प्रदेशी स्कन्ध अस्तित्ववान् है और अवक्तव्य है ।
(१२) चतुष्प्रदेशी स्कन्ध एक देश (असद्भाव पर्यायों) की अपेक्षा से अस्तित्ववान् नहीं हैं और एक देश (तदुभय पर्यायों) की अपेक्षा से अवक्तव्य है । इसलिए चतुष्प्रदेशी स्कन्ध अस्तित्ववान् नहीं है और अवक्तव्य है।
(१३) चतुष्प्रदेशी स्कन्ध एक देश (असद्भाव पर्यायों) की अपेक्षा से अस्तित्ववान् है और अनेक देश (तदुभय पर्यायों) की अपेक्षा से अवक्तव्य हैं । अतएव चतुष्प्रदेशो स्कन्ध अस्तित्ववान् नहीं है और अवक्तव्य है ।
(१४) चतुष्प्रदेशी स्कन्ध अनेक देश (असद्भाव पर्यायों) की अपेक्षा से अस्तित्ववान् नहीं हैं और एक देश (तदुभय पर्यायों) की अपेक्षा से अवक्तव्य है । अतः चतुष्प्रदेशो स्कन्ध अस्तित्ववान् नहीं है और अवक्तव्य है ।
(१५) चतुष्प्रदेशी स्कन्ध दो देश (असद्भाव पर्यायों) की अपेक्षा से अस्तित्ववान् नहीं है और दो देश (तदुभय पर्यायों) की अपेक्षा से अवक्तव्य है । इसलिए चतुष्प्रदेशी स्कन्ध अस्तित्ववान् नहीं है और अवक्तव्य है ।
(१६) चतुष्प्रदेशो स्कन्ध एक देश (सद्भाव पर्यायों) की अपेक्षा से अस्तित्ववान् है और एक देश (असद्भाव पर्यायों) को अपेक्षा से अस्तित्ववान् नहीं है तथा एक देश (तदुभय पर्यायों) की अपेक्षा से अवक्तव्य है। अतएव चतुष्प्रदेशी स्कन्ध अस्तित्ववान् है, नहीं है और अवक्तव्य है।
(१७) चतुष्प्रदेशी स्कन्ध एक देश (सद्भाव पर्यायों) को अपेक्षा से अस्तित्ववान् है, एक देश (असद्भाव पर्यायों) की अपेक्षा से अस्तित्ववान् नहीं है और दो देश (तदुभय पर्यायों) की अपेक्षा से अवक्तव्य है । अतः चतुष्प्रदेशी स्कन्ध अस्तित्ववान् है, नहीं है ओर अवक्तव्य है।
(१८) चतुष्प्रदेशी स्कन्ध एक देश (सद्भाव पर्यायों) की अपेक्षा से अस्तित्त्ववान् है, दो देश (असद्भाव पर्यायों) की अपेक्षा से अस्तित्ववान् नहीं है और एक देश (तदुभय पर्यायों) को अपेक्षा से अवक्तव्य है। इस
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