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जैन न्याय में सप्तभंगी
१४१ अवक्तव्य है। अतः त्रि-प्रदेशी स्कन्ध अस्तित्ववान् नहीं हैं और अवक्तव्य है।
(१३) त्रि-प्रदेशी स्कन्ध एक देश (सद्भाव पर्यायों) की अपेक्षा से अस्तित्ववान है और एक देश (असद्भाव पर्यायों) की अपेक्षा से अस्तित्ववान् नहीं है तथा एक देश (तदुभय पर्यायों) की अपेक्षा से अवक्तव्य है। अतएव त्रि-प्रदेशी स्कन्ध अस्तित्ववान है, नहीं है और अवक्तव्य है।
इस प्रकार त्रि-प्रदेशी स्कन्ध के विषय में कुल १३ भंग हुए। इसी प्रकार चतुष्प्रदेशी स्कन्ध के विषय में महावीर ने १९ भंगों का निर्देश किया है जो अधोलिखित हैं :
(१) चतुष्प्रदेशी स्कन्ध स्व-स्वरूप की अपेक्षा से अस्तित्ववान है। (२) चतुष्प्रदेशी स्कन्ध पर-स्वरूप की अपेक्षा से अस्तित्ववान् नहीं है । (३) चतुष्प्रदेशी स्कन्ध तदुभय की अपेक्षा से अवक्तव्य हैं।
(४) चतुष्प्रदेशी स्कन्ध एक देश (सद्भाव पर्यायों) की अपेक्षा से अस्तित्ववान् है और दूसरे देश (असद्भाव पर्यायों) की अपेक्षा से अस्तित्ववान् नहीं है । अतः चतुष्प्रदेशी स्कन्ध अस्तित्ववान् है और नहीं है ।
(५) चतुष्प्रदेशी स्कन्ध एक देश (सद्भाव पर्यायों) की अपेक्षा से अस्तित्ववान् है और अनेक देश (असद्भाव पर्यायों) की अपेक्षा से अस्तित्ववान् नहीं है । इसलिए चतुष्प्रदेशी स्कन्ध अस्तित्ववान है और नहीं है ।
(६) चतुष्प्रदेशी स्कन्ध अनेक देश (सद्भाव पर्यायों) की अपेक्षा से अस्तित्ववान् है और एक देश (असद्भाव पर्यायों) की अपेक्षा से अस्तित्व वान् नहीं है । अतः चतुष्प्रदेशी स्कन्ध अस्तित्ववान् है और नहीं है ।
(७) चतुष्प्रदेशी स्कन्ध दो देश (सद्भाव पर्यायों) की अपेक्षा से अस्तित्ववान् नहीं है । अतः चतुष्प्रदेशी स्कन्ध अस्तित्ववान् है और नहीं है ।
(८) चतुष्प्रदेशी स्कन्ध एक देश (सद्भाव पर्यायों) की अपेक्षा से अस्तित्ववान् है और एक देश (तदुभय पर्यायों) की अपेक्षा से अवक्तव्य है। अतएव चतुष्प्रदेशी स्कन्ध अस्तित्ववान है और अवक्तव्य है ।
(९) चतुष्प्रदेशी स्वन्ध एक देश (सद्भाव पर्यायों) की अपेक्षा से अस्तित्ववान् है और अनेक देश (तदुभय पर्यायों) की अपेक्षा से अवक्तव्य हैं। अतः चतुष्प्रदेशी स्कन्ध अस्तित्ववान् है और अवक्तव्य हैं ।
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