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________________ १३० जैन तर्कशास्त्र के सप्तभंगी नय की आधुनिक व्याख्या (५) “स्यात् अस्ति" क्या यह वक्तव्य है ? नहीं, "स्यात् अस्ति" अवक्तव्य है। (६) "स्यात् नास्ति" क्या यह वक्तव्य है ? नहीं "स्यात् नास्ति" अवक्तव्य है। (७) "स्यात् अस्ति च नास्ति च" क्या यह वक्तव्य है ? नहीं, "स्यात् अस्ति च नास्ति च" अवक्तव्य है। दोनों के मिलाने से मालम होगा कि जैनों ने संजय के पहले वाले तीन वाक्यों (प्रश्न और उत्तर दोनों) को अलग करके अपने स्याद्वाद की छह भंगियाँ बनाई हैं, और उसके चौथे वाक्य "न है और नहीं है" को छोड़ कर “स्यात्" भी अवक्तव्य है यह सातवाँ भंग तैयार कर अपनी सप्तभंगी पूरी की।" ___इस प्रकार राहुल जी यह सिद्ध करना चाहते हैं कि जैनों ने अपनी सप्तभंगी को संजयबेलट्टिपुत्त से उधार लिया है। उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा है कि “इस प्रकार एक भी सिद्धान्त ( = वाद) की स्थापना न करना, जो कि संजय का वाद था, उसी को संजय के अनुयायियों के लुप्त हो जाने पर, जैनों ने अपना लिया, और उसकी चतुभंगी न्याय को सप्तभंगी में परिणत कर दिया।"२ किन्तु वस्तुस्थिति ऐसी नहीं है। जैन-दर्शन के सप्तभंगी और संजय के चतुभंगी में बहुत अन्तर है। जहाँ जैन-सप्तभंगी स्वीकारात्मक है, वहीं संजय को चतुभंगी निषेध-परक है। इसीलिए जैनसप्तभंगी और संजय के चतुर्भगी में कोई समानता नहीं है। यदि सूक्ष्म दृष्टि से देखा जाय तो ऐसा प्रतीत होगा कि संजय केवल निषेध पर ही बल देते हैं, क्योंकि वे सभी प्रश्नों के उत्तर में मात्र यही कहते हैं कि "ऐसा नहीं है"। उपर्युक्त चारों भंग उनके अपने नहीं हैं। प्रत्युत किसी भी समस्या के सन्दर्भ में उठने वाले चार विकल्प हैं, जिनका उत्तर वे निषेधमुख से देते हैं। ___ यह ठीक है कि जैन-सप्तभङ्गी न्याय का विकास इसी चतुष्कोटि न्याय से हुआ है किन्तु चतुष्कोटि न्याय की यह परम्परा बहुत प्राचीन है। वह अपने मूल रूप में वेदों, उपनिषदों और बौद्ध-त्रिपिटक ग्रन्थों में उपलब्ध १. दर्शन-दिग्दर्शन, पृ० ४९६-९७. २. वही। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002082
Book TitleSyadvada aur Saptabhanginay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhikhariram Yadav
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages278
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Nyay
File Size11 MB
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