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________________ १२८ जैन तर्कशास्त्र के सप्तभंगी नय की आधुनिक व्याख्या (४) नेव होति न न होति तथागतो परंमरणाति ?" इन प्रश्नों के अतिरिक्त उक्त पक्षों को सिद्ध करने वाले और भी ऐसे अव्याकृत प्रश्न त्रिपिटक ग्रन्थों में उपलब्ध हैं. -- (१) सयंकतं दुक्खंति ? (२) परंकतं दुक्खति ? (३) सयंकतं परंकतं च दुक्खंति ? (४) असयंकारं अपरंकारं दुक्खति ? इसी प्रकार त्रिपिटक में संजय बेलट्ठिपुत्त के मत का जो वर्णन मिलता है उसमें भी इन्हीं चारों पक्षों का निरूपण है । किन्तु संजय बेलट्ठपुत्त एक संशयवादी दार्शनिक हैं । वे बुद्ध से एक कदम आगे बढ़कर किसी भी वस्तु के विषय में स्पष्टतः न हाँ कहना चाहते हैं और न ना कहना चाहते हैं । न उसे व्याकृत बताते हैं और न अव्याकृत बताते हैं । वे किसी भी वस्तु के विषय में कोई भी निश्चित निर्णय देना नहीं चाहते हैं । उनके अनुसार सीमित अवस्था में रहते हुए सीमा से बाहर के तत्त्व का निर्णय करना हमारे सामर्थ्य से परे है। दीघनिकाय में कहा गया है कि "महाराज ! यदि आप पूछें, "क्या परलोक है ? और यदि मैं समझैं कि परलोक है, तो आपको बतलाऊँ कि परलोक है । मैं ऐसा भी नहीं कहता, मैं वैसा भी नहीं कहता, मैं दूसरी तरह से भी नहीं कहता, मैं यह भी नहीं कहता कि "यह नहीं है" मैं यह भी नहीं कहता कि "परलोक नहीं है" ऐसा नहीं है । परलोक है भी और नहीं भी, परलोक न है और न नहीं है, अयोनिज ( = औपपातिक) प्राणी हैं, अयोनिज प्राणी नहीं हैं, हैं भी और नहीं भी, न हैं और न नहीं हैं, अच्छे-बुरे काम के फल हैं, नहीं हैं, हैं भी और नहीं भी, न हैं और न नहीं हैं ? तथागत मरने के बाद होते हैं नहीं होते हैं ? यदि मुझे ऐसा पूछें, और मैं ऐसा समझैं कि मरने के बाद तथागत न रहते हैं और न नहीं रहते हैं, तो मैं ऐसा आपको कहूँ। मैं ऐसा भी नहीं कहता, में वैसा भी नहीं कहता । अर्थात् इस सम्बन्ध में वह कुछ भी नहीं कहता । यह कुछ न कहना हमें किस तरफ ले जाता है ? निश्चय ही १. संयुक्त निकाय, ४४ । २ वही । ३. दीघनिकाय भाग १, सामञ्ञफलसुत्त । ( अनुवादक पं० राहुल सांकृत्यायन ) । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002082
Book TitleSyadvada aur Saptabhanginay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhikhariram Yadav
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages278
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Nyay
File Size11 MB
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