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________________ ११४ जैन तर्कशास्त्र के सप्तभंगी नय की आधुनिक व्याख्या या अंश है।' यदि यह बात सत्य है तो प्रश्न यह उठता है कि नय वस्तुस्वरूप का एकान्तिक ज्ञान प्रदान करता है, क्योंकि वह वस्तु के एक अंश को ही ग्रहण करता है और प्रमाण, जो वस्तु स्वरूप की समग्ररूपेण प्रतिस्थापना करता है, अनेकान्तिक ज्ञान प्रदान करता है। साथ ही एकान्तिक ज्ञान, अनेकान्तिक ज्ञान का विरोधी होता है। वस्तुतः यही विरोधिता उपर्युक्त कथन में भी परिलक्षित होती है। तब नय को प्रमाणांश कैसे कहा जा सकता है ? जैन आचार्यों के अनुसार प्रमाण और नय में कोई विरोध नहीं है। उनमें अन्तर मात्र इतना ही है कि प्रमाण वस्तु का समग्रतः ज्ञान प्राप्त करता है तो नय अंशतः और प्रमाण-ज्ञान तक पहुंचने के लिए तो नय की भी आवश्यकता पड़ती ही है । फिर वस्तु-स्थिति पर विचार करने पर व्यक्ति के ज्ञान का आंशिक या सापेक्ष होना ही न्याय संगत प्रतीत होता है, परन्तु वास्तविक ज्ञान इससे कुछ भिन्न ही है। यही कारण है कि वस्तु के परिज्ञान के इच्छुकजन को प्रथम आंशिक ज्ञान और उसके बाद पूर्ण ज्ञान होता है । जिस प्रकार कोई व्यक्ति गन्तव्य स्थल पर पहुँचने के लिए सोपान का आश्रय लेकर ही लक्ष्य की ओर अभिमुख होता है तथा अन्त में अपने लक्ष्य की प्राप्ति कर लेता है, उसी प्रकार आंशिक ज्ञान का आश्रय लेकर ही व्यक्ति वस्तु का पूर्ण ज्ञान प्राप्त करने में सफल हो सकता है। इस प्रकार आंशिक ज्ञान-एकान्त तथा पूर्ण ज्ञान–अनेकान्त में किसी भी प्रकार का विरोध परिलक्षित नहीं होता है। ___इस प्रकार अनन्त धर्मों से युक्त समग्र वस्तु का पूर्णतः ज्ञान प्रमाण द्वारा होता है । नय तो केवल अपनी विवक्षानुसार वस्तु के एकांश विशेष को ही ग्रहण करता है । यद्यपि नय में अपेक्षित धर्म के अतिरिक्त अन्य धर्मों की अपेक्षा नहीं होती, परन्तु वह अपने अपेक्षित धर्म के अतिरिक्त वस्तु में विद्यमान अन्य जितने भी धर्म हैं उनका प्रतिषेध नहीं करता है। अपितु उनके प्रति उसकी उदासीनता होती है। शेष धर्मों से वर्तमान में १. "नायं वस्तु न चावस्तु वस्त्वंशः कथ्यते यतः ।" तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक, ६:५ । २. द्रष्टव्य स्याद्वाद सिद्धान्त : एक अनुशीलन, पृ० ५७ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002082
Book TitleSyadvada aur Saptabhanginay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhikhariram Yadav
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages278
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Nyay
File Size11 MB
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