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________________ ज्ञान एवं वचन की प्रामाणिकता १११ दोनों ही ज्ञान हैं, परन्तु उनमें अन्तर यह है कि नय वस्तु के एक अंश का बोध कराता है और प्रमाण अनेक अंशों का।"" वस्तुएँ अनन्त धर्मात्मक हैं। प्रमाण उसे समग्र भाव से ग्रहण करता है। जबकि नय प्रमाण के द्वारा गृहीत वस्तु के एक अंश को ही जानता है। उदाहरणार्थ-प्रमाण घड़े को अखण्ड भाव से अर्थात् रूप, रस, गन्ध, स्पर्शादि उसके अनेक धर्मों का विभाग न करके पूर्णतः जानता है। जबकि नय उसका विभाजन करके "रूपवान घट:", "रसवान घटः" आदि रूप में उसे अपने अभिप्रायानुसार ग्रहण करता है। इस प्रकार नय का सामान्य अर्थ है ज्ञाता का अभिप्राय । ज्ञाता का वह अभिप्राय विशेष नय है, जो प्रमाण के द्वारा जाने गये वस्तु के एकांश का स्पर्श करता है । भेदाभेदात्मक, नित्यानित्यात्मक, सामान्य विशेषात्मक पदार्थ अखण्ड रूप से प्रमाण का विषय होता है। उसके किसी एक धर्म को विषय करने वाला ज्ञाता का अभिप्राय ही नय कहलाता है। न्यायावतार में कहा गया है कि "अनन्त धर्मों या गुणों से युक्त वस्तु के किसी अपेक्षित एक धर्म-विशेष का जो ज्ञान है वह नय कहलाता है।" २ अर्थात् प्रत्यक्षादि प्रमाण से यथावस्थित वस्तु-स्वरूप के ग्रहण के अनन्तर "यह नित्य है या अनित्य है" इत्यादि अपने आशय से वस्तु के एक अंश (धर्म) का परामर्श नय है । देवागम में कहा गया है कि स्याद्वाद रूप परमागम से विभक्त हए अर्थ विशेष का अविरोध रूप से जो साध्य के सधर्मरूप साधर्म्य का व्यंजक है उसको नय विशेष रूप हेतु कहते हैं । ३ "नीयते गम्यते साध्योर्थोऽनेनं इति नयः' इस निरुक्ति से "नय" शब्द यहाँ हेतु का वाचक है और अनेक धर्मों में से एक धर्म का प्रतिपादक सामान्य की दृष्टि में भी वह स्थित है। इसे दूसरे शब्दों में यों कहा जा सकता है कि नय प्रमाण का एक अंश मात्र है और प्रमाण अनेक नयों का समूह है; क्योंकि नय वस्तु को एक ही दृष्टि से ग्रहण करता हैं और प्रमाण अनेक दृष्टियों से ग्रहण करता है। १. "प्रमाणनयैराधिगमः" । तत्त्वार्थसूत्र, १:६। २. "एक देशविशिष्टोऽर्थो नयस्य विषयो मतः" । न्यायावतारसूत्र, का० २९ । ३. “सधर्मणैव साध्यस्य साधादविरोधतः । स्याद्वादप्रविभक्तार्थविशेषव्यंजकोनयः ॥ देवागम, श्लो० १०६ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002082
Book TitleSyadvada aur Saptabhanginay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhikhariram Yadav
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages278
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Nyay
File Size11 MB
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