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________________ ९२ जैन तर्कशास्त्र के सप्तभंगी नय की आधुनिक व्याख्या को एक उदाहरण के द्वारा अच्छी तरह समझा जा सकता है । जैसे हम किसी कच्चे आम को खट्टा कहते हैं । यद्यपि यह सत्य है कि उस समय वह खट्टा है किन्तु जिस आम को हमने खट्टा कहा है वही पकने पर मीठा हो जाता है । तब इस कथन को कि "यह आम खट्टा है" कैसे सत्य मान लिया जाय ? इतना ही नहीं; यदि भाषा की अक्षमता पर ध्यान दें तो यह बात पूर्णतः स्पष्ट हो जायेगी। जैसे नीबू, इमली, आँवला आदि खट्टे होते हैं । पर क्या नीबू, इमली, आँवला आदि सभी के खट्टेपन एक हो हैं ? यदि एक ही हैं तब उनमें भेद क्या रहा? वस्तुओं में भेद उनके गुण-धर्मों से ही तो होता है और यदि उन सबके खट्टेपन भिन्न-भिन्न हैं तब उन्हें एक ही खट्टे शब्द से क्यों सम्बोधित किया जाता है ? किन्तु इतना होने के बाद भी हम सभी के खट्टेपन को एक ही खट्टे शब्द से सम्बोधित करते हैं । वस्तुतः यह समस्या बनी ही रह जाती है कि वह किस प्रकार के खट्टेपन का सूचक है ? परन्तु इससे यह नहीं समझना चाहिये कि वस्तु का अभिव्यक्तीकरण हो हो नहीं सकता अथवा भाषा और वस्तु में कोई सम्बन्ध ही नहीं है । उनमें सम्बन्ध है अवश्य । वस्तु का जो कुछ भी अभिव्यक्तीकरण होता है वह भाषा के माध्यम से ही होता है । भाषा अपने अर्थ (विषय) का सकेतक तो है ही । किन्तु उसके हूबहू प्रतिलिपि का संवादी नहीं है । जैनदर्शन के अनुसार शब्द और अर्थ में सापेक्ष एवं सीमित, वाच्य वाचक भाव सम्बन्ध है । शब्द अपने विषय का वाचक तो होता है किन्तु उसकी समस्त विशेषताओं का सम्पूर्णता के साथ निर्वचन करने में असमर्थ है। वस्तुतः कोई भी कथन तथ्य का पूर्ण संवादी नहीं होता है । यद्यपि आंशिक रूप से वस्तु का संकेतक होने से आंशिक सत्य है । इसीलिए जैन आचार्यों ने कहा है पूर्ण या निरपेक्ष तथ्य कथ्य नहीं है । उन्होंने सापेक्ष कथन को ही सत्य कहा है । जैन दर्शन के अनुसार चूँकि प्रत्येक कथन तथ्य के सम्बन्ध में आंशिक ज्ञान ही प्रदान करता है । अतः प्रत्येक कथन आंशिक सत्य होता है । किन्तु स्मरणीय है कि कथन - कथन होता है कथ्य नहीं । इसलिए वह मात्र कथ्य का संकेतक होता है । लेकिन कथ्य का प्रतिरूप नहीं । अतः उसकी सत्यता-असत्यता तथ्य के सम्बन्ध में उसकी संकेतक शक्ति पर निर्भर करती है । वस्तुतः जो कथन कथ्य का जितना अधिक स्पष्ट संकेत करता · Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002082
Book TitleSyadvada aur Saptabhanginay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhikhariram Yadav
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages278
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Nyay
File Size11 MB
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