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ज्ञान एवं वचन की प्रामाणिकता
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अर्थ-ख्यापन का अर्थ होगा अज्ञात अर्थ का उद्घाटन करना । वह ज्ञान जो किसी अज्ञात अर्थ (ज्ञेय) का उद्घाटक हो अप्रसिद्ध अर्थ ख्यापक ज्ञान कहलाता है।
इसी प्रकार अपूर्व का अर्थ है अभूतपूर्व, जो पहले विद्यमान न था अर्थात् बिल्कुल नवीन यानी जो किसी अन्य ज्ञान से कभी न जाना गया हो। प्रापण (प्र + आप् + ल्युट) का अर्थ है प्राप्त करना, अधिग्रहण, अवाप्ति । इस प्रकार अपूर्व अर्थ प्रापण का अर्थ होगा जो पहले किसी अन्य ज्ञान से न जाना गया हो ऐसे अज्ञात अर्थात् बिल्कुल नवीन ज्ञान को ग्रहण करना । इस प्रकार ऐसे ज्ञान को ग्रहण करने वाला अपूर्व अर्थ प्रापक ज्ञान कहलाता है और अपूर्व अर्थ ग्रहण करने के कारण यथार्थ होता है।
(द) अविसंवादित्व या संवादी प्रवृत्ति
संवादी का अर्थ है सदृश या समान, और विसंवादी का अर्थ है असदृश या असमान । विसंवादी में "अ" उपसर्ग के जोड़ने से अविसंवादी शब्द बनता है और "अ" अविसंवादी पद में पहले आकर विसंवादी का निराश करता है जिसके कारण अविसंवादी का पुनः वही अर्थ होगा सदश या समान । अविसंवादी से अविसंवादित्व या अविसंवादिता पद बनता है। जिसका फलितार्थ है समानता या तुल्यता । इसी प्रकार प्रवृत्ति का अर्थ है शब्दों के अर्थ का बोध कराने की एक शक्ति या मन का किसी विषय की ओर झुकाव । जो ज्ञान ज्ञेय वस्तु के तुल्य या समान हो वह अविसंवादी और जो ज्ञान ज्ञेय के संवादी होने की शक्ति से युक्त है वह ज्ञान अविसंवादी या संवादी प्रवृत्ति युक्त ज्ञान कहलाता है । (य) प्रवृत्ति सामर्थ्य या अर्थक्रियाकारित्व ___ प्रवृत्ति सामर्थ्य का सामान्य तात्पर्य है अर्थ बोध कराने की शक्ति । किन्तु अर्थक्रियाकारित्व का आशय होगा ज्ञान के आधार पर सार्थक क्रिया का सम्पादन अथवा ज्ञान का व्यवहार में उपयोगी होना। वह ज्ञान जो व्यवहार में उपयोगी हो अर्थ क्रियाकारी ज्ञान कहलाता है। जैसे हमें तालाब में पानी का प्रतिभास होता है और यदि प्रतिभासित पानी हमारी प्यास बुझाने में समर्थ है तो यह कहा जा सकता है कि हमारा प्रतिभासित पानी का पूर्व-ज्ञान अर्थ क्रियाकारी है ।
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