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जैन तर्कशास्त्र के सप्तभंगी नय की आधुनिक व्याख्या
यह कहा जा सकता है कि अनेकान्तवाद और स्याद्वाद का गहरा और अटूट सम्बन्ध है। चूंकि अनेकान्तवाद स्याद्वाद के द्वारा ही मुखरित होता है । इसलिए स्याद्वाद अनेकान्तवाद का भाषायी रूप है। स्याद्वाद का यह भाषायी रूप जिस कथन पद्धति का सहारा लेता है। उसे सप्तभंगी कहते हैं। किन्तु प्रश्न यह है कि सप्तभंगी की यह कथन पद्धति कितनी सत्य है और कितनी असत्य है ? क्या सप्तभंगी के सभी प्रकथन सत्य हैं ? या उनमें कुछ असत्य हैं और कुछ सत्य हैं ? इन प्रश्नों को समझने के पहले यह जान लेना आवश्यक है कि हमारा ज्ञान और तत्सम्बन्धी कथन कितना सत्य होता है और कितना असत्य होता है ? इसका पूर्णतः विवेचन हम अग्रिम अध्याय में प्रस्तुत करेंगे।
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