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________________ स्याद्वाद : एक सापेक्षिक दृष्टि ७९ अपने प्रतिपाद्य विषयवस्तु की अनेकान्तात्मकता को अभिव्यक्त करने के लिए ही प्रस्तुत किया गया है। जैन दर्शन में वस्तु की इस अनेकान्तात्मकता को स्पष्ट करने के लिए स्याद्वाद और अनेकान्तवाद का प्रयोग हुआ है । इस प्रकार एक स्थूल दृष्टि से स्याद्वाद और अनेकान्तवाद दोनों एक ही हैं । यद्यपि स्थूलतः स्याद्वाद और अनेकान्तवाद के सिद्धान्त एक ही हैं किन्तु सूक्ष्म दृष्टि से विचार करने पर उनमें कुछ अन्तर भी प्रतीत होता है । जहाँ अनेकान्तवाद वस्तु की अनेकान्तात्मकता का सूचक है वहाँ स्याद्वाद वस्तु की उस अनेकान्तात्मकता को द्योतित करते हुए एकान्तिक भाषा - दोष का परिमार्जन करता है । जैनाचार्य आनन्द ऋषि जी का कहना है कि - " यद्यपि अनेकान्तवाद स्याद्वाद का और स्याद्वाद अनेकान्तवाद का पर्यायवाची शब्द कहा जाता है, फिर भी दोनों में यह अन्तर है कि स्याद्वाद भाषा- दोष का परिमार्जन करता है कि ऐसी भाषा का प्रयोग किया जाये जो अपने कथन की प्रामाणिकता को प्रदर्शित करते हुए भी पदार्थ के स्वरूप को सुरक्षित रखे ।" " सारांश यह है कि अनेकान्तवाद और स्याद्वाद में एक अटूट सम्बन्ध है जिसे आधार - आधेय का सम्बन्ध कह सकते हैं । अनेकान्तवाद स्याद्वाद का आधार है और स्याद्वाद अनेकान्तवाद की भाषायी अभिव्यक्ति की एक शैली है । अतः वे एक दूसरे से सम्बन्धित हैं । यदि इस सम्बन्ध कोन स्वीकार किया जाय तो अनेकान्तवाद की भाषायी अभिव्यक्ति किसके माध्यम से होगी ? स्याद्वाद किस सिद्धान्त को अभिव्यक्त करेगा और वह किस पर आधारित होगा ? वस्तुतः उनके इस सम्बन्ध के अभाव में स्थाद्वाद और अनेकान्तवाद दोनों अपूर्ण रह जायेंगे। दोनों सिद्धान्तों में पूर्णता इस सम्बन्ध को लेकर हो जाती है। इसी प्रकार स्याद्वाद को न मानने पर अनेकान्तवाद और अनेकान्तवाद को न मानने पर स्याद्वाद अपूर्ण रह जाता है; क्योंकि स्याद्वादरूपी भवन अनेकान्तवादरूपी नींव पर ही खड़ा होता है । यदि अनेकान्तवादरूपी नींव को निकाल दिया जाय तो स्याद्वादरूपी भवन भी धराशायी हो जायेगा । इसी तरह स्वाद्वादरूपी महल के अभाव में अनेकान्तवादरूनी नोंव का कोई महत्व नहीं है । अतः १. स्याद्वाद सिद्धान्त : एक अनुशीलन, पृ० २७ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002082
Book TitleSyadvada aur Saptabhanginay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhikhariram Yadav
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages278
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Nyay
File Size11 MB
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