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________________ ६२ जैन तर्कशास्त्र के सप्तभंगी नय की आधुनिक व्याख्या धर्मकं वस्तु" । प्रत्येक वस्तु में सत्त्व-असत्त्व, एकत्व-अनेकत्व, नित्यत्वअनित्यत्व आदि अनेक गुण-धर्म अपेक्षा भेद से रहते हैं। एक ही वस्तु में जिस समय द्रव्य-दष्टि से सत्त्व-एकत्त्व, नित्यत्व और सामान्यत्व के गुणधर्म हैं उसी समय उसमें स्व-पर्याय-दृष्टि से अनेकत्व, अनित्यत्व और विशेषत्व तथा पर-पर्याय की दृष्टि से असत्त्व के भी गुण-धर्म हैं। जिसकी व्याख्या हमने पिछले अध्याय में की है। इस प्रकार जब वस्तु में विविध अपेक्षाओं से विविध गुण-धर्म हैं तो उसको जानने के लिए अनेकान्तिक दृष्टि अपनानी होगी; और जब उसको जानने वाली दष्टि अनेकान्तिक है तब वस्तु के एकांश का निरूपण करने वाली एकान्तिक भाषा शैली उसके यथार्थ स्वरूप के प्रतिपादन में कैसे समर्थ हो सकती है; जैसे एक कलम अपेक्षा भेद से लम्बी, छोटी, मोटीपतली, हल्की-भारी तथा बहुरंग आदि अनेक धर्मों का युगपत् आधार है तब यदि यह कहा जाय कि यह कलम "लम्बी ही है" तो इस वाक्य से इसमें उपस्थित अन्य धर्मों का लोप ही फलित होता है। वस्तुतः बिना अपेक्षा के निरपेक्ष प्रकथन द्वारा वस्तु के यथार्थ स्वरूप का प्रतिपादन कथमपि संभव नहीं है। जैन-आचार्यों ने कहा है कि (अनन्तधर्मात्मक) बहु-आयामी जटिल तत्त्व की विवेचना बिना अपेक्षा के संभव नहीं है।' इसीलिए प्रकथन में कथन की सापेक्षता का सूचक "स्यात्" पद का प्रयोग करना आवश्यक माना गया है। (ख) मानवीय ज्ञान को अपूर्णता __ जैन-विचारकों की दृष्टि में साधारण मानव का ज्ञान अपूर्ण एवं सोमित है क्योंकि ऐन्द्रिक सामर्थ्य और तर्कबुद्धि या चिन्तन-शक्ति सीमित है और इनके माध्यम से पूर्ण सत्य को जानने के उसके प्रयास आंशिक सत्य के ज्ञान से आगे नहीं बढ़ पाते हैं। मानव जब अपने उसी आंशिक ज्ञान को ही एक मात्र सत्य मान लेता है तो वह सत्य, सत्य न रहकर असत्य हो जाता है। परन्तु उपर्युक्त कथन से यह नहीं समझना चाहिए कि पूर्ण सत्य अज्ञेय है; वह ज्ञेय है किन्तु बिना पूर्णता को प्राप्त किये उसे पूर्ण रूप से नहीं जाना जा सकता है। आइन्स्टोन ने तो इससे एक कदम १. "न विवेच यितुं शक्यं बिनाऽक्षां हि मिश्रितम् ।' -अभिधान राजेन्द्र, खण्ड ४, पृ० १८५३; For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.002082
Book TitleSyadvada aur Saptabhanginay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhikhariram Yadav
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages278
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Nyay
File Size11 MB
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