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६२ जैन एवं बौद्ध शिक्षा-दर्शन : एक तुलनात्मक अध्ययन मोक्ष प्राप्ति के मार्ग
उमास्वाति ने मोक्ष-प्राप्ति के तीन मार्ग बतलाये हैं- सम्यक्-दर्शन, सम्यक्ज्ञान और सम्यक्-चारित्र। इन्हें त्रिरत्न के नाम से भी सम्बोधित करते हैं। इन्हें शिक्षा-साधना का कल्याण पथ माना गया है। त्रिरत्न मोक्ष-प्राप्ति के साधन हैं। शिक्षा-जगत में साधनों का विशुद्ध होना बहुत ही जरुरी है, क्योंकि साधन के विशुद्ध होने पर ही विशुद्ध साध्य की प्राप्ति होती है। उपर्युक्त तीनों साधनों का संक्षिप्त विवेचन निम्न प्रकार से हैसम्यक्-दर्शन
यथार्थ ज्ञान के प्रति श्रद्धा का होना सम्यक्-दर्शन कहलाता है। जैन दर्शन में सात तत्त्व स्वीकार किये गये हैं- जीव, अजीव, आस्रव, बन्ध, संवर, निर्जरा और मोक्ष। इन्हीं सात तत्त्वों के प्रति श्रद्धा रखना सम्यक्-दर्शन है। कुछ लोगों में तो यह स्वभावत: विद्यमान रहता है और कुछ इसे विद्योपार्जन एवं अभ्यास के द्वारा सीख भी सकते हैं।
सम्यक्-ज्ञान
सम्यक-ज्ञान में जीव, अजीव आदि मूल तत्त्वों का सविशेष ज्ञान प्राप्त होता है। ज्ञान जीव में सदा विद्यमान रहता है और जब उस ज्ञान में सम्यक्त्व का आविर्भाव होता है तब वह सम्यक-ज्ञान कहलाता है। सम्यक्-ज्ञान का अर्थ प्रमाणादि द्वारा यथार्थ ज्ञान से नहीं है, बल्कि मिथ्या-दृष्टि के निवारण से है। मिथ्या-दृष्टि का निवारण ही मोक्ष में सहायक होता है। सम्यक्-ज्ञान असन्दिग्ध तथा दोषरहित होता है। सम्यक्-चारित्र
हिंसादि दोषों का त्याग और अहिंसादि महाव्रतों का पालन सम्यक्-चारित्र कहलाता है। पं० सुखलाल संघवी के अनुसार सम्यक्-ज्ञान पूर्वक काषायिक भाव अर्थात् राग-द्वेष
और योग (मानसिक, वाचिक और कायिक) क्रिया की निवृत्ति से होनेवाला स्वरूप रमण सम्यक्-चारित्र है। शिक्षा का मूल सम्बन्ध सम्यक्-चारित्र से है। अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह- ये पाँच महाव्रत सम्यक्-चारित्र की प्राप्ति के प्रमुख साधन हैं। मैत्री, कारुण्य, माध्यस्थ्य आदि भावनाओं का चिन्तन तथा क्षमा, मार्दवादि दश धर्मों का पालन व मदिरा-मांसादि सप्त दुर्व्यसनों का परित्याग इन साधनों की पुष्टि करता है। सम्यक्-चारित्र के अंगों का अलग-अलग विवेचन निम्न रूप से है
अहिंसा- सामान्यतया अहिंसा का अर्थ 'न हिंसा अहिंसा' या 'हिंसा विरोधिनी अहिंसा' से लिया जाता है। लेकिन जैन मतानुसार
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