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________________ १७४ (१६) (१७) जैन एवं बौद्ध शिक्षा-दर्शन : एक तुलनात्मक अध्ययन आहार आदि ग्रहण करने के लिए पहले साधुओं को आमन्त्रित करना और बाद में गुरु को आमन्त्रित करना। गुरु से पूछे बिना दूसरे साधु को उसकी इच्छानुसार प्रचुर आहार देना। गुरु के साथ आहार ग्रहण करते समय सुस्वादु आहार स्वयं खा लेना। गुरु द्वारा बुलाये जाने पर अनसुनी कर देना। गुरु के प्रति या उनके समक्ष मर्यादा से अधिक बोलना। गुरु के द्वारा बुलाये जाने पर उत्तर में ‘क्या कहते हो' आदि अभद्र शब्दों का प्रयोग करना। गुरु के द्वारा कुछ पूछे जाने पर आसन पर बैठे-बैठे बात सुनना और उत्तर (१९) (२०) (२१) (२२) देना। (२३) (२४) (२५) (२६) (२७) (२८) गुरु के प्रति तू शब्द का प्रयोग करना। किसी कार्य की आज्ञा को अस्वीकार करके उल्टा उन्हीं से कहना कि तुम ही कर लो। गुरु के धर्मकथा कहने पर ध्यान से न सुनना और अनमनस्क रहना। धर्मकथा करते समय बीच में ही टोकना - आप भूल गये हैं, यह ऐसे नहीं है इत्यादि। धर्मकथा करते समय बीच में भंग करना। धर्मकथा करते समय परिषद् का भेदन करना और कहना - कब तक कहोगे, भिक्षा का समय हो गया है। गुरु को नीचा दिखाने के लिए सभा में ही गुरु द्वारा कथित विषय का विस्तृत विवेचन करना। गुरु के शय्या संस्तारक को पैर से छूकर क्षमा मांगे बिना ही चले जाना। गुरुदेव के शय्या संस्तारक पर खड़े होना, बैठना और सोना। गुरुदेव के आसन से ऊँचे आसन पर खड़े होना, बैठना और सोना। गुरुदेव के आसन के बराबर आसन पर खड़ा होना, बैठना और सोना। (२९) (३०) (३१) (३२) (३३) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002081
Book TitleJain evam Bauddh Shiksha Darshan Ek Tulnatmak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Kumar
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year2003
Total Pages250
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Epistemology
File Size10 MB
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