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शिक्षार्थी की योग्यता एवं दायित्व
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दूसरे साधु को भेज दीजिए या जाना पड़ा तो इधर-उधर से घूमकर लौट आना तथा पूछने पर राजाज्ञा की तरह भृकुटि तानकर जवाब देना, २१ भिक्षा मांगने में अपमान समझकर भिक्षा के लिए नहीं जाना और भिक्षा माँगने में आलस्य करना आदि।२२ जिस प्रकार दुष्ट बैल गाड़ी में जोते जाने पर कभी समिला अर्थात् जुए की कील को तोड़ देता है, कभी गाड़ी उन्मार्ग पर ले जाता है, कभी सड़क के पार्श्व में बैठ जाता है तो कभी गिर पड़ता है, कभी कूदता है तो कभी उछलता है, कभी जुए को तोड़ता है और तरुण गाय के पीछे भाग जाता है। इतना ही नहीं, उसी में कोई धूर्त बैल होता है जो मृतक-सा भूमि पर पड़ा रहता है। ठीक इसी प्रकार अविनीत एवं धैर्य में कमजोर शिष्य धर्मयान में जुतते हुए गुरु द्वारा सम्पादित किये जाने पर विभिन्न प्रकार की कुचेष्टाएँ करके गुरु को पीड़ित करते हैं।२३ पुन: कहा गया है कि जिस प्रकार सूअर चावलों की भूसी को छोड़कर विष्ठा खाता है, उसी प्रकार अज्ञानी शिष्य शील, सदाचार छोड़कर दुश्शील, दुराचार में रमण करता है।२४ जो अपने गुरु के प्रति आशातनाओं का आचरण करता है वह सर्वदा अपमानित होता है। आशातनाएँ तैंतीस प्रकार की बतलायी गयी हैं२५(१) मार्ग में गुरु के आगे चलना। (२) मार्ग में गुरु के बराबर चलना। (३) गुरु के पीछे अकड़कर चलना। (४ से ६) गुरु के आगे, बराबर, पीछे अड़कर बैठना आदि तीन आशातनाएँ। (७ से ९) गुरु के आगे, बराबर तथा पीछे खड़ा होना आदि तीन आशातनाएँ। (१०) यदि गुरु और शिष्य एक साथ एक पात्र में जल लेकर शौच-शुद्धि के
लिए बाहर गये हों तो गुरु से पूर्व आचमन तथा शौच करना। बाहर से लौटने पर गुरु से पहले ही ईर्यापथ की आलोचना करना।
रात्रि में जागते हुए भी गुरु के बुलाने पर न बोलना। (१३) गुरु से बात करने के लिए आये हुए व्यक्ति से, गुरु से पहले स्वयं बातचीत
करना। (१४) आहार आदि की आलोचना पहले साधुओं के समक्ष कर बाद में गुरु के
आगे करना। (१५) आहार आदि लाकर पहले साधुओं को दिखलाना।
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