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________________ १७२ जैन एवं बौद्ध शिक्षा-दर्शन : एक तुलनात्मक अध्ययन (७) अपोह - हेय वस्तुओं को छोड़ना। (८) निर्णीत - युक्ति द्वारा पदार्थ का निर्णय करना। विनीत शिक्षार्थियों में उपर्युक्त गुण का होना अत्यन्त आवश्यक है, क्योंकि विनय ही विद्यार्थी जीवन का मूल है। विनय से ही विद्यार्थी को यश, कीर्ति, प्रतिष्ठा ज्ञान आदि प्राप्त होते हैं। अविनीत शिक्षार्थी के लक्षण अविनीत शिक्षार्थियों में चौदह प्रकार के दोष बताये गये हैं२०(१) बार-बार क्रोध करना। (२) क्रोध को लम्बे समय तक रखना। (३) मित्रता को ठुकराना। (४) ज्ञान प्राप्त कर अहंकार करना। (५) स्खलना होने पर दूसरों का तिरस्कार करना। (६) मित्रों पर क्रोध करना। (७) प्रिय मित्रों की भी परोक्ष में शिकायत करना। (८) असम्बद्ध प्रलाप करना। (९) द्रोह करना। (१०) अभिमान करना। (११) रसलोलुप होना। (१२) अजितेन्द्रिय होना। (१३) असंविभागी होना अर्थात् साथियों का सहयोग न करना, और (१४) अप्रीतिकर होना अर्थात् दूसरों का अप्रिय करना। 'उत्तराध्ययन' में अविनीत शिक्षार्थी के कुछ कार्यों का वर्णन आया है जिससे उनका स्वरूप निर्धारित होता है - गुरु द्वारा अनुशासित किये जाने पर बीच में बोलना, आचार्य के वचनों में दोष निकालना तथा उनके वचनों के प्रतिकूल आचरण करना। किसी कार्य विशेष से भेजने पर नानाप्रकार के बहाने बनाना, किसी गृहस्वामिनी के सम्बन्ध में कहना कि वह मुझे नहीं जानती इसलिए मुझे भिक्षा नहीं देगी या वह घर से बाहर गयी होगी, अतः किसी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002081
Book TitleJain evam Bauddh Shiksha Darshan Ek Tulnatmak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Kumar
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year2003
Total Pages250
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Epistemology
File Size10 MB
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