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शिक्षार्थी की योग्यता एवं दायित्व
१७१ का पालन नहीं करता है, गुरु के सानिध्य में नहीं रहता है, गुरु के प्रतिकूल आचरण करता है, असम्बुद्ध है अर्थात् तत्त्वज्ञ नहीं है वह अविनीत कहलाता है।१५ विनीत शिक्षार्थी के लक्षण
'उत्तराध्ययन' में विनीत के निम्नलिखित गुण बतलाये गये हैं
(१) नम्र होना, (२) अस्थिर होना, (३) छल-कपट से रहित होना, (४) अकौतूहली होना, (५) किसी की निन्दा न करना, (६) क्रोध को अतिसमय तक न रखना, (७) मित्रों के प्रति कृतज्ञ होना, (८) प्राप्त ज्ञान पर अहंकार न करना, (९) स्खलना होने पर दूसरों का तिरस्कार न करना, (१०) मित्रों पर क्रोध न करना, (११) अप्रिय मित्र के लिए एकान्त में भी भलाई की कामना करना, (१२) वाक्-कलह और हिंसादि न करना, (१३) अभिजात (कुलीन) होना,(१४) लज्जाशील होना और (१५) प्रतिसंलीन अर्थात् विषय के प्रति जागरूक रहना आदि।१६
शिक्षाशील वह है जिसमें निम्नोक्त आठ गुण पाये जाते हैं
(१) जो हँसी-मजाक न करता हो, (२) जो सदा शान्त रहता हो, (३) किसी भी मर्म का उद्घोषण न करता हो, (४) अश्लील अर्थात् चरित्रहीन न हो, (५) विशील, (६) खान-पान का लोलुपी न हो, (७) अक्रोधी हो और (८) सत्य में सदा अनुरक्त हो।१७ 'आवश्यकनियुक्ति' में सुयोग्य शिष्य के बारे में कहा गया है कि वह गुरु के पढ़ाये हुए विषय को ध्यानपूर्वक सुनता है, प्रश्न पूछता है, ध्यानपूर्वक उत्तर सुनता है और अर्थ ग्रहण करता है, उस पर चिन्तन करता है, उसकी प्रामाणिकता का निश्चय करता है, उसके अर्थ को याद रखता है और तदनुसार आचरण करता है।१८ इसी प्रकार 'आदिपुराण' में भी विनीत शिक्षार्थी के आठ लक्षण निरूपित किये गये हैं, जो इस प्रकार हैं१९
(१) शुश्रूषा- सत्कथा को सुनने की इच्छा होना शुश्रूषा गुण है। (२) श्रवण- सुनना। (३) ग्रहण- किसी भी विषय को समझकर ग्रहण करना। (४) धारण- पठित विषय को बहुत समय तक या सदैव स्मरण रखने की
क्षमतावाला। (५) स्मृति- पूर्व में ग्रहण किये हुए उपदेश आदि को स्मरण रखना। (६) ऊह - तर्क द्वारा पदार्थ के स्वरूप निर्धारण की शक्ति का होना।
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