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________________ शिक्षार्थी की योग्यता एवं दायित्व १६९ निकलवाया और स्वजनों को निमन्त्रित कर उनका सत्कार किया। तत्पश्चात् वाग्देवी की प्रतिमा का पूजन किया, नाना रत्नों से जटित स्वर्ण के आभूषण बनवाये और आचार्य को बहमूल्य वस्त्र, आभूषण एवं नारियल आदि भेंट में दिये। लेखशाला में विद्यार्थियों को मषिपात्र व लेखनी दी। साथ ही द्राक्षा, खडशर्करा, चिंरौजी और खजूर आदि वितरित किये। तदुपरान्त महावीर ने तीर्थ जल से स्नान कर, सर्वालंकार से विभूषित हो, महाछत्र आदि धारण किये हुए, चामरों से विद्यमान चतुरंग सेना से परिवृत्त गाजे-बाजे के साथ लेखशाला में प्रवेश किया। __ इसी प्रकार महाबल कुमार तथा दृढ़प्रतिज्ञ आदि के शिक्षा ग्रहण करने के उपनयन उत्सव का वर्णन भी आया है। अभयदेव ने उपनयन का अर्थ कला ग्रहण किया है। कला का अर्थ है- विद्या। विद्या ग्रहण के समय जो उत्सव मनाया जाता है, उसे उपनयन कहते हैं।६ 'आदिपुराण' में विद्याध्ययन के अन्तर्गत चार प्रकार के संस्कार बताये गये हैं (१) लिपि संस्कार- वैदिक ग्रन्थों के अनुसार उपनयन संस्कार के पश्चात् ही लिपिज्ञान, अंकज्ञान या शास्त्रों आदि का अध्ययन आरम्भ होता था, परन्तु जैन ग्रन्थ 'आदिपुराण' में उपनीति क्रिया के पूर्व लिपि संस्कार करने का वर्णन आया है। बालक जब पाँच वर्ष का हो जाता था तब उसका विधिवत अक्षरारम्भ कराया जाता था। जैन मान्यतानुसार उपनयन तो माध्यमिक शिक्षा के पूर्व होता है। __ लिपि संस्कार की विधि का वर्णन करते हुए कहा गया है कि बालक के पिता को यथाशक्ति पूजन सामग्री लेकर श्रुतदेवता का पूजन करना चाहिए और अध्ययन कराने में कुशल व्रती गृहस्थ को ही उस बालक के अध्यापक पद पर नियुक्त करना चाहिए।' इस विधि में बालक को अ, आ इ, ई आदि स्वर, व्यञ्जन, संयुक्ताक्षर योगबाह आदि का अभ्यास करया जाता था। 'आदिपुराण' के अनुसार लिपि संस्कार के बाद उपनयन संस्कार का विधान है। (२) उपनीति क्रिया- गर्भ से आठवें वर्ष में बालक की उपनीति क्रिया होती थी। वैदिक-ग्रन्थों में जिसके लिए संस्कार शब्द का प्रयोग किया गया है उसी को आदिपुराण में क्रिया शब्द से इंगित किया गया है। इस क्रिया में शिक्षार्थी को केशों का मुण्डन करवाकर व्रतबन्धन तथा तीन लरियों की बनी मुंज की मेखला धारण करनी पड़ती थी।१० तत्पश्चात् सफेद धोती धारण करने का विधान था। जो चोटी रखता था, सफेद धोती और सफेद दुपट्टा धारण करता था, जो विकारों से रहित होता था और व्रत के चिह्न स्वरूप यज्ञोपवीत सूत्र को धारण करता था, वह ब्रह्मचारी कहलाता था। जिनालय में Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002081
Book TitleJain evam Bauddh Shiksha Darshan Ek Tulnatmak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Kumar
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year2003
Total Pages250
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Epistemology
File Size10 MB
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