SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 174
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३. ४. १. २. जैन एवं बौद्ध शिक्षण-प्रणाली में जो मूल अन्तर है वह यह है कि जैन परम्परा आचार्य को प्रथम स्थान देती है तथा उपाध्याय को द्वितीय, जब कि बौद्ध शिक्षण - प्रणाली में उपाध्याय को प्रथम तथा आचार्य को द्वितीय स्थान प्राप्त है । यह बौद्ध परम्परा की विशेषता कही जा सकती है। जैन परम्परा के अनुसार आचार्य ही संघ का सर्वोच्च अधिकारी होता है, अन्य सब उसके सहायक माने गये हैं। और बौद्ध परम्परा के अनुसार उपाध्याय संघ का सर्वोच्च अधिकारी होता है । सन्दर्भ : ४. ५. ६. ७. शिक्षक की योग्यता एवं दायित्व १६१ करती हैं। जैन शिक्षण प्रणाली में एक ओर जहाँ ज्ञान, तप और वीर्य आदि पाँच आचारों का निरतिचार पालन करनेवाले तथा दूसरों को इसमें प्रवृत्त करनेवाले को आचार्य स्वीकार किया है, वहीं दूसरी ओर बौद्ध शिक्षण-प्रणाली में संवर देने में समर्थ तथा कृपालु, गूढ़ विषयों का पहले चिन्तन तथा मनन करनेवाले और जिनके द्वारा बताये गये मार्ग पर शिष्य धर्मानुसार आरूढ़ हों, वे ही उपाध्याय अर्थात् योग्य गुरु होते हैं। ८. जैन एवं बौद्ध शिक्षण-प्रणाली में क्रमशः आचार्य एवं उपाध्याय के लक्षणों तथा योग्यताओं में काफी समानताएँ देखने को मिलती हैं, परन्तु जैन शिक्षा में आचार्य के छत्तीस विशेष गुण बताये गये हैं जिसका बौद्ध ग्रन्थों में कहीं स्पष्ट वर्णन देखने को नहीं मिलता। यद्यपि उपाध्याय के कुछ लक्षणों, गुणों आदि को विवेचित करने का यथासम्भव प्रयास किया गया है। जैन एवं बौद्ध शिक्षण-प्रणाली में गुरु का शिष्य के प्रति कर्तव्यों का विस्तृत विवेचन किया गया है। इससे जैन एवं बौद्ध शिक्षण-प्रणाली में गुरु-शिष्य सम्बन्ध तथा एक-दूसरे के प्रति प्रेम, स्नेह, आदर आदि का पता चलता है। 'संस्कृत शब्दार्थ कौस्तुभ', पृ० ३९८. 'उत्तराध्ययन', १/४०-४१, ८/१३. वही, १/८, १७, २७. वही, १/४६. वही, ३६ / २६५. वही, १७/४. आ मर्यादयातद् विषयविनयरूपया चर्य्यन्ते सेव्यते जिनशासनार्थोपदेशकतया तदाकांक्षिभिरित्याचार्याः । 'भगवतीसूत्रवृत्ति', १/१/१. सदा आयारबद्दहू सदा आयारियं चरो । आयारमायारवंतो आयरिओ तेण उच्चदे || 'मूलाचार', ५०९ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002081
Book TitleJain evam Bauddh Shiksha Darshan Ek Tulnatmak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Kumar
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year2003
Total Pages250
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Epistemology
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy