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जैन एवं बौद्ध शिक्षा-दर्शन : एक तुलनात्मक अध्ययन
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५२. वही ५३. 'धर्मामृत' (अनगार), ७/८८ ५४. 'आदिपुराण में प्रतिपादित भारत', पृ०-२६७-२६८
वही ५६. वटवृक्षः पुरोऽयं ते घनच्छाय: स्थितो महान्।
इत्युक्तोऽपि न तं धर्म श्रित: कोऽपि वदाद्भुतम्।। 'आदिपुराण', १२/२२६
'आदिपुराण में प्रतिपादित भारत', पृ० २६८-२६९ ५८. वही, पृ०-२६९ ५९. वही, पृ०-२६९ ६०. प्रकृतस्यार्थतत्त्वस्य श्रोतृबुद्धो समर्पणम्। उपक्रमोऽसौ विज्ञेयस्तथोपोद्धात इत्यपि।
'आदिपुराण', २/१०३
'आदिपुराण में प्रतिपादित भारत', पृ०-२६९ ६२. वही, पृ०-२७० ६३. वही, पृ०-२७० ६४. 'विशेषावश्यकभाष्य', सम्पा०-डॉ० नथमल टाटिया, पृ०-१६८-१६९ ६५. सत्संख्याक्षेत्रस्पर्शनकालान्तरभावाल्पबहुत्वैश्च।। 'सवार्थसिद्धि', १/८
प्रज्ञोत्कर्षजुप: श्रुतस्थितिपुषश्चेतोऽक्षसंज्ञामुषः संदेहच्छिदुरा: कषायभिदुरा: प्रोद्यत्तपोमेदुराः। संवेगोल्लसिता: सदध्यवसिताः सर्वातिचारोज्झिताः
स्वाध्यायात् परवाद्यशङ्कितधिय: स्यु शासनोद्भासिन। 'धर्मामृत' (अनगार) ७/८९ ६७. 'जैनधर्म में तप : स्वरूप और विश्लेषण', पृ० ४५९ ६८. वही, ६९. वही, ७०. वही, पृ० ४५९ ७१. न वि अत्थि न वि अ होट्ठी सज्झाय समं तवोकम्म। 'बृहत्कल्पभाष्य', ११६९ ७२. सज्झाएवा निउतेण सव्वदूक्खविमोक्खणे। 'उत्तराध्ययन', २६/१०. ७३. बहुभवे संचित्य खलु सज्झाएण खणे खवई। ‘चन्द्रप्रज्ञप्ति', ९१. ७४. सज्झायणं नाणावरणिज्जं कम्मं खवेई। ‘उत्तराध्ययन', २९/१८. ७५. स्वाध्यायेन मनोरोधस्ततोऽक्षाणां विनिर्जयः।
इत्याकलय्य ते धीरा: स्वाध्यायधियःधियमादधुः।। 'आदिपुराण', ३४/१३४. ७६. 'तत्त्वार्थवार्तिक', पृ०-७८९. ७७. 'ललितविस्तर' (हि०अनु०) अ० १०, पृ०-२४९ तथा लेफमैन, 'ललितविस्तर',
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