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________________ जैन एवं बौद्ध शिक्षा के उद्देश्य एवं विषय ९९ हुडुक्क, विचिक्की, करटी, डिमडिम, किणिक, कडंब, दर्दर, दर्दरिका, कलशिका, मडक्क, तल, ताल, कांस्य ताल, रिंगरिसिका, लत्तिका, मकरिका, शिशुमारिका, वाली, वेणु, परिली और बद्धक। 'राजप्रश्नीय', ७७ ४७. 'कादम्बरी', पृ० २३१-३२. ४८. 'समवायांगसूत्र', ७२/३५६. ४९. 'स्थानांगसूत्र', ७/१/३९; 'अनुयोगद्वार', पृ० ११७. ५०. 'ऋग्वेद', १०/३४/८. ५१. 'कामसूत्र', १/३-१६, तुलना के लिए देखिए- 'कुवलयमालाकहा', २२/१-१०. ५२. 'समवायांग', ७२/३५६. ५३. 'जैन आगम साहित्य में भारतीय समाज', पृ० २९७ ५४. 'कुवलयमालाकहा', २२/१-१०. ५५. “समवायांग', ७२/३५६. ५६. 'ऋग्वेद', १/४३/४. ५७. वही, ५/४४/५. ५८. 'समवायांग', ७२/३५६. ५९. वही ६०. "जैन आगम साहित्य में भारतीय समाज', पृ० २९७. ६१. वही, पृ०-२९७. ६२. वही, पृ०-२९८. ६३. 'प्राचीन भारतीय संस्कृति में जैन धर्म का योगदान', पृ० २९०. ६४. 'समवायांग', ७२/३५६. ६५. वही ६६. वही ६७. 'कामसूत्र', १/३-१६. ६८. 'समवायांग', ७२/३५६. ६९. वही ७०. वही ७१. तुलना के लिए देखिए- 'कामसूत्र' १/३-१६; 'समवायांग', ७२/३५६. ७२. "समराइच्चकहा', पृ० ७३४-३५. ७३. 'जम्बूद्वीपपज्ञप्ति टीका'-२, पृ० १३६. ७४. 'प्राचीन भारतीय साहित्य की सांस्कृतिक भूमिका', पृ० १६०, १९३. ७५. 'स्थानांग', ३/३९८ जैनधर्म की यह मान्यता है कि ऋषभ के पुत्र भरत ने आर्य वेदों की रचना की थी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002081
Book TitleJain evam Bauddh Shiksha Darshan Ek Tulnatmak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Kumar
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year2003
Total Pages250
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Epistemology
File Size10 MB
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