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९८ जैन एवं बौद्ध शिक्षा-दर्शन : एक तुलनात्मक अध्ययन
का उल्लेख मिलता है। ये दोनों नाम 'उरिया' लिपि की पृष्ठभूमि की ओर संकेत करते हैं। हंसलिवी भयलिवी, जक्खी तह रक्खसी य वोधव्वा। उड्डी जणवी फुडूक्की, कीडी दविडी य सिंघविया।। मालविणी नड नागरि, लाडलिवी पारसीय बोधब्बा। तह अनिमित्ता णेया, चाणक्की मूलदेवी य।। 'उपदेशपद', वैनयिकीबुद्धिप्रकरण
मुनि पुण्यविजयजी के अनुसार ई०पू० ५०० से ३०० तक भारत की समस्त लिपियाँ ब्राह्मी के नाम से कही जाती थी। 'भारतीय जैन श्रमण संस्कृति अने
लेखनकला', पृ०-९ ३७. 'प्राचीन भारतीय संस्कृति में जैनधर्म का योगदान', पृ० २८६-८७. ३८. गीत, नृत्य, वाद्य, कौशल-लिपिज्ञान, उदारवचन, चित्रविधि, पुस्तकर्म, पत्रच्छेद्य,
माल्यविधि, गन्धयुत्यस्वाधविधान, रत्नपरीक्षा, सीवन, रंगपरिज्ञान, उपकरणक्रिया, मानविधि, आजीवज्ञान, तिर्यग्योनिचिकित्सित, मायाकृतपाषण्डपरिज्ञान, क्रीडाकौशल, लोकज्ञान, वैचक्षण्य, संवाहन, शरीर-संसकार और विशेष कौषल, आयुप्राप्ति, अक्षविधान, रूपसंख्या, क्रियामार्गण, बीजग्रहण, नयज्ञान, करणादान, चित्राचित्रविधि, गूढराशि, युल्याभिहार, क्षिप्रग्रहण, अनुप्राप्तिलेखस्मृति, अग्निकर्म, छलव्यामोह, ग्रहदान, उपस्थान-विधि, युद्ध, सत, गत, नृत्त, पुरुष का भावग्रहण, स्वरागप्रकाशन, प्रत्यङ्गदान, नखदन्तविचार, नीवीस्रंसन, गुह्याङ्ग का संस्पर्शनानुलोम्य, परमार्थ-कौशल, हर्षण, समानार्थता-कृतार्थता, अनुप्रोत्साहन, मृदुक्रोधप्रवर्तन, सम्यक्क्रोधनिवर्तन, क्रुद्धप्रसादन, सुप्त-परित्याग, चरमस्वापविधि गुह्यगूहन, साश्रुपात रमण को
शापदान, स्वशपथक्रिया, प्रस्थितानुगमन और पुन: पुनर्निरीक्षण। 'कामसूत्र', १/३-१६. ३९. 'कल्पसूत्र', १/१०. ४०. 'ऋषिभदेव : एक परिशीलन', पृ०-१४९
'छान्दोग्योपनिषद्', ७/१.
'स्थानांगसूत्र', ४/४/६३२,६३३,६३४,६३७ ४३. 'राजप्रश्नीय टीका', पृ०-१३६. ४४. 'कुवलयमालाकहा', २२/१-१०; कादम्बरी, पृ०-२३१-३२. ४५. 'समवायांग', ७७/३५६, 'कादम्बरी', पृ०-२३१-३२. ४६. शंख, श्रृंग (रणसिंगा), शंखिका, खरमुकई, पेया, पिरिपिरिका, पणव (ढोल), पटह
(नगाड़ा), भंभा, होरम्भ, भेरी, झालर, दुन्दुभि, मुरज, मृदंग, नन्दीमृदंग, आलिंग, कुस्तुंबा, गोमुखी, मादला, वीणा, विपंची, वल्लकी, षड्भ्रामरी वीणा, भ्रामरी वीणा, बध्वीसा, परिवादिनी वीणा, सुघोषाघंटा, नंदीघोषघंटा, सौ तार की वीणा, काछवी वीणा, चित्र वीणा, आमोट, झंझा, नकुल, तूण, तुंब वीणा (तम्बूरा), मुकुन्द,
४१.
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