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८८ जैन एवं बौद्ध शिक्षा-दर्शन : एक तुलनात्मक अध्ययन (१२) हस्तिग्रीवा- हाथी पर चढ़ने-उतरने अर्थात् उस पर सवारी की कला का नाम
हस्तिग्रीवा है। (१३) अश्वपृष्ठ- घोड़े पर चढ़ने-उतरने की कला अश्वपृष्ठ है। (१४) रथ– रथ चलाने की कला। (१५) धनुष्कलाप- धनुष विद्या अर्थात् धनुष चलाने की युक्तियों को जानना। इस
___ कला के अन्तर्गत अक्षणवेध तथा बालवेध आदि आते हैं। (१६) स्थैर्य- स्थिरता और सामर्थ्य का ज्ञान होना स्थैर्य है। (१७) सुशौर्य- युद्ध में शूरता-वीरता दिखाना सुशौर्य है। (१८) बाहुव्यायाम- बाहों से कसरत करने की कला बाहुव्यायाम है। (१९) अङ्कुशग्रह- महावत विद्या अर्थात् हाथी चलाने की कला अङ्कुशग्रह है। (२०) पाशग्रह- जाल लगाने की कला पाशग्रह कहलाती है। (२१) उधान- शत्रु पक्ष पर ऊपर से आक्रमण करने की कला उधान
कहलाती है। (२२) निर्वाण- युद्ध में आगे निकलने की कला निर्वाण है। (२३) अवयान- अर्थात् पीछे हटने की कला जानना अवयान है। (२४) मुष्टिग्रह- मुट्ठी से पकड़ने की कला मुष्टिग्रह है। (२५) पदबन्ध– विशेष विधि से कदम बढ़ाने की कला पदबन्ध है। (२६) शिखाबन्ध– जूड़ा बांधने की कला का नाम शिखाबन्ध है। (२७) छेद्य- किसी वस्तु को काटने की कला छेद्य है। (२८) भेद्य- लक्ष्य को बेधने की कला भेद्य है। (२९) दालन- छेद करने की कला को दालन कहते हैं। इसे दारण नाम से भी
जाना जाता है। (३०) स्फलन- उछालने की कला स्फलन है। (३१) अक्षुण्णवेधित्व- बिना वेदना किये बेधने की कला का नाम
अक्षुण्णवेधित्व है। (३२) मर्मवेधित्व- मर्म को बेधने की कला मर्मवेधित्व है।
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