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द्वितीयोऽङ्कः
३५ तत्रभवतां भवतां हतकस्य दुर्मेधसो विलसितेन किमपि व्यसनमुपजायेत तदा मां पदातिरेणुं स्मरेयुः। (इत्यभिधाय प्रणम्य त्वरिततरं निष्क्रान्तः।) मैत्रेय:- कथमयं पाशपाणिप्रतिभयेनौषधेर्वलयं विस्मृत्य गतवान् ?
(नेपथ्ये साक्षेपम्) कः कालेन कटाक्षितः? स्फुटरुषा दृष्टः फणीन्द्रेण कः?
स्फूर्जद्वह्निकणः करिष्यति शिरः कस्याशनिर्भस्मसात् । झम्पां कल्पविशृङ्खले जलनिधौ को दातुमुत्कण्ठितः? क्रीडावेश्मनि नः क एष मनुजः स्वैरं परिभ्राम्यति?।।१२।।
(उभौ सत्रासमाकाशमालोकयतः।) (ततः प्रविशति गगनादवतरणं नाटयन् पाशपाणिः
कुन्दप्रभप्रभृतिकश्च परिवारः।) पाशपाणि:- अरे मत्यौ! मरणोन्मुखौ कुतस्त्यौ युवाम्? किमर्थं च देवतायतनस्य जगतीं पुरन्दरेणापि नमस्करणीयां वसुधासम्पर्कपांशुराभ्यां (पादाभ्यां) कश्मलयतः? के दुश्चक्र के कारण आप पर कोई सङ्कट आ जाय तो तत्काल मेरा स्मरण कर लीजिएगा। (यह कहता हुआ प्रणाम कर शीघ्र चला जाता है।) मैत्रेय- क्या यह पाशपाणि के भय से औषधिवलय को भूलकर चला गया?
(नेपथ्य में क्रोधपूर्वक) किस पर काल की कुदृष्टि पड़ गयी है? कौन क्रुद्ध विषैले साँप की आँखों के सामने पड़ गया है? दहकती चिनगारियों वाला वज्र किसके शिर को भस्मसात् करेगा? कौन है जो प्रलयकारी लहरों वाले समुद्र में छलाँग लगाने को उत्कण्ठित है? यह कौन मनुष्य हमारे क्रीड़ाभवन (द्वीप) में स्वेच्छया विहार कर रहा है? ।।१२।।
(दोनों डर कर आकाश की तरफ देखते हैं।) (तत्पश्चात् आकाश से उतरने का अभिनय करते हुए पाशपाणि तथा उसके
कुन्दप्रभ आदि अनुचरगण प्रवेश करते हैं।) पाशपाणि- अरे मनुष्यो ! मरणोन्मुख तुम दोनों कहाँ से आये हो? और क्यों इन्द्र के द्वारा भी वन्दनीय मन्दिर के प्राङ्गण को भूमि के सम्पर्क से धूल-धूसरित पैरों से मलिन कर रहे हो?
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