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कौमुदीमित्रानन्दरूपकम् गजपाद:- सार्थवाह! नार्हसि कुलपतेः प्रसादभङ्गमाधातुम्।
कुलपतिः- वत्स ! श्रेयसि मुहूर्ते ते विवाहमङ्गलविधिः। इदानीं तावद- ध्वश्रमापगमाय पर्णशालामनुसर। भो भोस्तपोधनाः! अभ्यङ्क्त इङ्गुदीस्नेहेन पयोधिपाथःसञ्जातलावण्यभङ्गान्यतिथीनामङ्गानि। पाययध्वमध्वश्रमापगम- पटीयांसि नालिकेरीफलाम्भांसि। वत्से कौमुदि ! त्वमपि क्रीडान्तरमनुतिष्ठ।
(नेपथ्ये) आधत्त त्वरितं तटेषु जलधेः स्वर्लोकधात्रीरुहः
पुष्याणां प्रकरं परं, स्थगयत स्वच्छै रजांस्यम्बुभिः। पुंसः कर्मकृतोऽपि रक्षत बत ! स्वेच्छाप्रचारं चिरं, ___ शुद्धान्तेन समं समेष्यति यतो देवः प्रतीचीपतिः।।२०।। कुलपति:-(आकर्ण्य) कथमयं प्रचेताः संक्रीडितुमात्मनो द्वीपमधितिष्ठति? (विमृश्य) वयमपि तपोभृतां प्रचारं निवारयितुं प्रक्रमामहे, सान्ध्यं च विधिमनुतिष्ठामः।।
(इति निष्क्रान्ता: सर्वे।)
। प्रथमोऽङ्कः समाप्तः।। गजपाद- सार्थवाह! आप कुलपति को निराश न करें।
कुलपति- पुत्र! उत्तम मुहूर्त में तुम्हारा शुभविवाह सम्पन्न होगा। इस समय तुम मार्ग (यात्रा) की क्लान्ति दूर करने के लिए (विश्रामार्थ) पर्णशाला में जावो। हे हे तपस्वियो! समुद्री यात्रा के श्रम से अतिथियों के नष्ट हए लावण्य वाले अङ्गों की हिङ्गोट के तेल से मालिश करो और यात्रा की क्लान्ति मिटाने में लाभकारी नारियल का पानी पिलाओ। पुत्रि कौमुदि! तब तक तुम भी दूसरा कपट-जाल रचो।
(नेपथ्य में) समुद्रतट पर यथाशीघ्र कल्पवृक्ष के पुष्पों का समूह रख दिया जाय, स्वच्छ जल छिड़ककर धूलि को शान्त किया जाय और दीर्घकाल से कार्य करने वाले लोग भी अब स्वेच्छया भ्रमण बन्द करें, क्योंकि भगवान् पाशपाणि अपनी कान्ताओं के साथ (द्वीप पर) आ रहे हैं।।२०।।
__ कुलपति- (सुनकर) क्या ये पाशपाणि कामकेलि हेतु अपने द्वीप पर आ रहे हैं? (सोचकर) मै भी तपस्वियों का भ्रमण रोकने हेतु जाता हूँ और सन्ध्यावन्दन सम्पन्न करता हूँ।।
(सभी निकल जाते हैं।) । प्रथम अङ्क समाप्त।। For Private & Personal Use Only
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