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________________ प्रथमोऽङ्कः द्वीपस्यास्य पयोधिरोधसि कृतस्थानस्य वेलोच्छल नानारत्ननिधेः किमत्रभवती लीलायते देवता.? ।।११।। मैत्रेय: - काऽप्येषा सरुषः प्रभाववशतो देवस्य दैत्यस्य वा __लोके शोकमलीमसेऽत्र मनुजीभावं दधौ देवता। तेनेयं सुरलोकवैभवपरीरम्भाकुलोच्चस्तरां दोलोत्सालमिषेण खेचरगतिप्रागल्भ्यमभ्यस्यति।।१२।। मित्रानन्द:एतां निसर्गसुभगां विरचय्य वेधाः शङ्के स्वयं स भगवानभिलाषुकोऽभूत् । तेनापरग्रहभयाद् वियदङ्कदोला दोलायितैरमनुजग्रहणां चकार ।।१३।। (विमृश्य) यथेयं निरुद्धदोलाकेलिः प्रतिमुहुरस्मान् कटाक्षयति तथा व्यक्तमनयाऽपि वयं दृष्टाः । तदुत्तीर्य नेदीयांसो भवामः। अथवा यह बहुविध रत्नों के भण्डार, ऊँची-ऊँची लहरों वाले समुद्र के तट पर स्थित इस द्वीप की वन्दनीया देवी लीला कर रही है? ।।११।। मैत्रेय- यह सम्भवत: कोई देवी है जिसने किसी देव अथवा दैत्य के शापवश इस दुःख से कलुषित (मर्त्य) लोक में मनुष्यरूप धारण किया है, इसीलिए सुरलोक के वैभव के उपभोग के लिए व्याकुल यह तरुणी काफी ऊँचाई पर झूला झूलने के बहाने से आकाश में विचरण हेतु निपुणता-प्राप्ति का अभ्यास कर रही है।१२।। मित्रानन्द- मझे ऐसा प्रतीत होता है कि सृष्टिकर्ता ब्रह्मा इस निसर्गसुन्दरी की रचना करके स्वयं इसमें अनुरक्त हो गये। इसीलिए दूसरे इसका ग्रहण न कर लें इस भय से आकाश के गोदरूपी झूले में झुलाकर इसको मनुष्यों के लिए अप्राप्य बना दिया।।१३।। (सोचकर) जिस प्रकार यह झूलना बन्द कर बार-बार हम दोनों पर कटाक्ष कर रही है, उससे स्पष्ट है कि इसने हमको देख लिया है। तो (अब हम) उतर कर इसके पास चलें। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002080
Book TitleKaumudimitranandrupakam
Original Sutra AuthorRamchandrasuri
Author
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1998
Total Pages254
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Culture
File Size8 MB
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