SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 59
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कौमुदीमित्रानन्दरूपकम् (ततः प्रविशति मित्रानन्दो मैत्रेयश्च) मित्रानन्दः- परमार्थोऽयम् - अकृताखण्डधर्माणां पूर्वे जन्मनि जन्मिनाम्। सापदः परिपच्यन्ते गरीयस्योऽपि सम्पदः।।७।। (विमृश्य मैत्रेयं प्रति) प्रयाणप्रारम्भनिरूपितस्य शुभोदर्कसंसूचिनस्तस्य त्वदीयस्य शकुनस्य तदिदं यानपात्रभङ्गावेदितं शुभमभूत्। मैत्रेय:- सार्थवाहपुत्र! मा स्म विषीद, (तत्पश्चात् मित्रानन्द और मैत्रेय प्रवेश करते हैं।) मित्रानन्द-यह परमसत्य है - पूर्वजन्म में अखण्ड धर्माचरण न करने वाले प्राणियों की प्रभूत सम्पत्ति भी अतिशीघ्र विनष्ट हो जाया करती है।।७।। (सोचकर मैत्रेय से) यात्रा के प्रारम्भ में तुम्हारे द्वारा विवेचित उस शुभसूचक शकुन के शुभ फल की सूचना नौका नष्ट होने से ही मिल गयी ?? मैत्रेय-सार्थवाहपुत्र! दुःखी मत हो, कथानक की सूचना देने वाले विचित्र वाक्यों द्वारा सत्रधार के साथ वार्तालाप करते हैं। नाटकादि का यह भाग 'आमुख' अथवा 'प्रस्तावना' कहलाता है नटी विदूषको वाऽपि पारिपार्श्विक एव वा। सूत्रधारेण सहिताः संलापं यत्र कुर्वते ।। चित्रैर्वाक्यैः स्वकार्योत्थैः प्रस्तुताक्षेपिभिर्मिथः आमुखं तत्तु विज्ञेयं नाम्ना प्रस्तावनाऽपि सा।। - साहित्यदर्पण, ६/३१,३२ इस आमुख के उद्घात्यक, कथोद्घात, प्रयोगातिशय, प्रवर्तक और अवलगित- ये पाँच भेद हैं - उद्घात्यकः कथोरातः प्रयोगातिशयस्तथा। प्रवर्तकावलगिते पञ्च प्रस्तावनाभिदा: ।। - सा०द०, ६/३३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002080
Book TitleKaumudimitranandrupakam
Original Sutra AuthorRamchandrasuri
Author
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1998
Total Pages254
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Culture
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy