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________________ प्रथमोऽङ्कः नाट्यलक्षणनिर्माणापातावगाढसाहित्याम्भोधिना विशीर्णकाव्यनिर्माणनिस्तन्द्रेण श्रीमता रामचन्द्रेण विरचितं कुतूहलसहस्रनिधानं कौमुदीमित्रानन्दाभिधानं निःशेषरसभावप्रदीपकं द्वितीयं रूपकम्। सूत्रधार:- कथमयं वत्सस्ताण्डकः प्रबन्धविशेषं निर्णयति? (प्रविश्य) नट:- भाव ! प्रणमामि। सूत्रधारः-- माई! कौमुदीमित्रानन्दनामः प्रकरणस्याभिनये कृतनिश्चयोऽसि? नट:- सन्ति नामात्र भूयांसि सामाजिकजनमनःकौतुकानुबन्धीनि कथावस्तूनि। रसनिवेशभावाऽभावयोः पुनर्भावः प्रमाणम्। सूत्रधार:- (विहस्य) प्रकरणस्यास्य सरसतायां किमुच्यते? यतः - की रचना करने से निष्णात बुद्धि वाले, नाट्यलक्षण (नाट्यदर्पण) की रचना कर साहित्यसागर में डुबकी लगाने वाले और सतत काव्यरचना में तत्पर श्रीमान् रामचन्द्र द्वारा रचित सहस्रों कुतूहलों का निधान और समस्त रस-भावों को उद्दीप्त करने वाला 'कौमुदीमित्रानन्द' नामक एक रूपक (प्रकरण) तो है ही। सूत्रधार-क्या यह वत्स ताण्डक (किसी) प्रबन्धविशेष (के अभिनय) का निर्णय कर रहा है? (प्रवेश कर) नट-भाव ! प्रणाम करता हूँ। सूत्रधार- मार्ष! क्या ‘कौमुदीमित्रानन्द' नामक प्रकरण के अभिनय का निश्चय कर चुके हो? नट-(हाँ भाव, क्योंकि) इसमें प्रेक्षकों के मन में कुतूहल उत्पन्न करने वाली अत्यधिक कथा-सामग्री है। इसमें रसयोजना के भाव या अभाव के विषय में तो आप ही प्रमाण हैं। सूत्रधार-(हँस कर) इस प्रकरण की सरसता के विषय में क्या कहना? क्योंकि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002080
Book TitleKaumudimitranandrupakam
Original Sutra AuthorRamchandrasuri
Author
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1998
Total Pages254
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Culture
File Size8 MB
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