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________________ कौमुदीमित्रानन्दरूपकम् सूर्या-चन्द्रमसावपि द्युतिमयौ निस्तेजसी लोचने जानीतः स्फुरिताञ्जनैकवपुषौ, तत् किं न तौ भास्वरौ?।।२।। (आकाशे) किमादिशत? ये दुरात्मानो भवन्तमप्यपजानते न ते नाट्यवेदाम्भोधिपारदृश्वानः, ततः कृतं वैमनस्येन। प्रभूतकौतुकानुबन्धं (प्रबन्ध) कमप्यभिनीय व्यपेतव्यामोहतमांसि प्रसादय प्रबलभाग्यप्रागल्भ्यलभ्यानां सम्यानां मनांसि। (विमृश्य) यथावस्थितमादिशन्ति सभ्याः। दुर्जनोपनीतक्लेशकोटिकण्टकिला खल्वियं संसाराटवी। गरीयसे च फलायोपनिबद्धकक्षेण प्रेक्षापूर्वकारिणा लोचने निमील्य सोढव्या एव प्रत्यूहव्युपनिपत्तयः। तदहं गृहं गत्वा प्रबन्धविशेषं कमपि पर्यालोचयामि। (नेपथ्ये) कृतं पर्यालोचनेन। अस्ति खलु श्रीसिद्धहेमचन्द्राभिधानशब्दानुशासनविधानवेधसः श्रीमदाचार्यहमचन्द्रस्य शिष्येण प्रबन्धशतविधाननिष्णातबुद्धिना दीप्तिमान् सूर्य और चन्द्रमा को भी निस्तेज (प्रकाशहीन) आँखें अञ्जन का ढेर मात्र समझती हैं, तो क्या वे दीप्तिमान् नहीं हैं? अर्थात् अवश्य हैं।।२।। (आकाश में) क्या कह रहे हैं? जो दुरात्मा (मूर्ख) आपकी भी निन्दा कर रहे हैं, वे नाट्यवेद के मर्म को नहीं समझते। अतः (उनकी निन्दा से) दुःखी होना व्यर्थ है। आप किसी अत्यधिक कौतूहलपूर्ण प्रबन्ध (रूपक) का अभिनय कर हमारे प्रबल भाग्य की प्रगल्भतावश (सभा में) आये हुए सामाजिकों के मोहान्धकार से लिप्त मन को आह्लादित करें। (सोचकर) प्रेक्षकगण किसी समसामयिक (वर्तमान) सामाजिक स्थिति को चित्रित करने वाले रूपक के प्रदर्शन का आदेश दे रहे हैं। यह संसाररूपी जङ्गल दुर्जनों द्वारा उपस्थापित भाँति-भाँति के क्लेशों से कँटीला हो गया है, अत: उत्कृष्ट फल की प्राप्ति हेतु कमर कसकर और सोच-समझकर कार्य करते हुए हमको इन विघ्नों को सहन करना ही होगा। अत: अब मैं घर जाकर किसी प्रबन्धविशेष के बारे में विचार करता हूँ। (नेपथ्य में) विचार करने की कोई आवश्यकता नहीं। 'सिद्धहेमशब्दानुशासन' नामक व्याकरण की रचना करने वाले विद्वान् श्रीमदाचार्य हेमचन्द्र के शिष्य, एक सौ प्रबन्धों Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002080
Book TitleKaumudimitranandrupakam
Original Sutra AuthorRamchandrasuri
Author
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1998
Total Pages254
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Culture
File Size8 MB
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