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________________ भूमिका XXXVII उन दोनों को दण्डित करने का प्रयत्न किया जाता है तो मित्रानन्द आदि द्वारा अपनी सुरक्षा के लिए अन्ततः भगवान् ब्रह्मा की शरण में जाना आदि वर्णित है । " (१२) भेदन सभी पात्रों के रङ्गमञ्च से चले जाने को भेदन कहा जाता — 'भेदनं पात्रनिर्गमः ।’२ यह अङ्ग अङ्क के अन्त में तथा विष्कम्भक और प्रवेशक के अन्त में अवश्य उपनिबन्धनीय है— 'भेदस्तु सर्वसन्धिष्वङ्कान्ते प्रवेशकविष्कम्भकान्ते च अवश्यं निबन्धनीयः । ३ इसी प्रकार अन्य सन्धियों के अङ्गों का भी, रूपक में यथासम्भव क्रम अथवा आवश्यकतानुसार व्युत्क्रम से, निबन्धन रूपककार को करना चाहिए, क्योंकि इससे रूपकों में चमत्कार आता है। यहाँ केवल मुखसन्धि के सभी अङ्गों का सोदाहरण निरूपण किया गया है। इसी रीति से प्रतिमुखादि सन्धियों के अङ्गों का भी उदाहरण देखना चाहिए। सब का निरूपण तो यहाँ सम्भव नहीं है । सन्ध्यङ्गों के विषय में निम्नलिखित तथ्यों पर ध्यान अवश्य देना चाहिए (क) जैसे सन्धि (मुखसन्धि ) का आरम्भ आमुख के बाद ही करना चाहिए वैसे इसके अङ्गों का भी आमुख के बाद ही, क्योंकि अङ्गी से बहिर्भूत अङ्गों का समावेश अनुचित है। कहा भी है नाट्यदर्पण में— 'आमुखस्य च नटवृत्तत्वेन इतिवृत्तानङ्गत्वात्तदनन्तरमङ्गानां निबन्ध: । '४ (ख) कुछ अङ्ग ऐसे हैं जिनका एक सन्धि में भी आवश्यकतानुसार अनेक बार समावेश सम्भव है और भिन्न सन्धियों में भी — 'विलोभनादीनि तु सर्वसन्धिष्वपि भवन्ति, संविधानकवशात्तदर्थस्यान्यत्रापि सम्भवात् । " (ग) कहीं-कहीं एक सन्धि के सभी अङ्गों में से कुछ का समावेश दूसरी सन्धियों से भी किया जा सकता है यदि ऐसा करने पर कथा में अधिक चमत्कार आ जाय । ऐसी स्थिति में सन्ध्यङ्गों की आरम्भ में जो १२, १३ आदि संख्या बतलाई गई है वह सामान्य व्यवस्था के अनुसार है, विशेष व्यवस्था में यह संख्या भिन्न भी १. कौ०मि०, पृ० ३६ । २. ना० द०, पृ० ११६ । ३. वहीं, पृ० १०६ । ४.. वहीं, पृ० १०६ । ५. ना० द०, पृ० १०६ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002080
Book TitleKaumudimitranandrupakam
Original Sutra AuthorRamchandrasuri
Author
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1998
Total Pages254
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Culture
File Size8 MB
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