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________________ XXIX भूमिका (घ) नियताप्ति फलप्राप्ति के विषय में निश्चय को नियताप्ति नामक अवस्था कहते हैं। यद्यपि इसे विमर्शसन्धि के अन्तर्गत अथवा विमर्शसन्धि से सम्बद्ध माना गया है जिसमें विघ्न और सफलता का समानबल होना पाया जाता है तथापि दृढ़ सङ्कल्प के कारण फलप्राप्ति का निश्चय हो जाता है। अतएव इसमें विघ्नों का निर्देश रूपक के अन्तर्गत रूपककार को करना ही चाहिए। (ङ) फलागम लौकिक इष्ट फल की उत्पत्ति का आरम्भ-फल की उत्पत्ति का होने लग जाना- फलागम है। फलप्राप्ति-नायक द्वारा फल की अनुभूति तो बाद में होती है। अतएव नायक को फलानुभूति के लिये इन पाँच क्रमिक अवस्थाओं से गुजरना पड़ता है। इसके पश्चात् ही उसे फल का अनुभव होता है।' उपर्युक्त क्रमागत पाँच अवस्थाओं से क्रमशः सम्बद्ध पाँच सन्धियाँ होती हैं। इनका विवेचन और इस प्रकरण में सीमा-निर्धारण इस प्रकार है(क) मुखसन्धि प्रधान कथावस्तु के मुख जैसे महत्त्वपूर्ण अंश को, अर्थात् 'बीज' की आरम्भस्वरूप अवस्था के लिये साक्षात् या परम्परया उपयोगी विषयों का रूपक के जिस भाग में वर्णन किया जाता है उसे मुखसन्धि कहा गया है। इसमें बीज के उपन्यास के साथ-साथ अङ्गी एवं यथासम्भव अङ्गभूत रसों का समावेश भी होना चाहिए मुखं प्रधानवृत्तांशो बीजोत्पत्तिरसाश्रयः।। कौमुदीमित्रानन्द प्रकरण का प्रथम अङ्क के आदि से लेकर द्वितीय अङ्क के अन्त तक का भाग मुखसन्धि है। इसमें मुख्य फल के बीज का समावेश जहाँ हुआ है उसका निर्देश बीजस्वरूपनिरूपण के प्रसङ्ग में किया जा चुका है। प्रधान रस संयोग शृङ्गार की अभिव्यञ्जना भी प्रथम अङ्क के ११ से १४ तक के पद्यों में और १८वें पद्य में तथा बीच-बीच के गद्यांशों में भी हुई है। १. इन सबका विस्तृत विवरण नाट्यदर्पण तथा उसकी वृत्ति में (पृ० ८५-९३) द्रष्टव्य है। २. ना०द०, पृ० ९५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002080
Book TitleKaumudimitranandrupakam
Original Sutra AuthorRamchandrasuri
Author
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1998
Total Pages254
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Culture
File Size8 MB
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