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भूमिका
उपर्युक्त ग्रन्थों के अतिरिक्त छोटे-छोटे स्तवस्वरूप कतिपय अन्य ग्रन्थ भी
उपलब्ध हैं जिनके शीर्षक हैं
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१७. युगादिदेवद्वात्रिंशिका
१८. व्यतिरेकद्वात्रिंशिका
१९. प्रसादद्वात्रिंशिका
२०. आदिदेवस्तव
२१. मुनिसुव्रतदेवस्तव
२२. नेमस्तव
२३. जिनस्तोत्राणि
२४-३९. सोलह साधारण जिनस्तव ।
कौमुदीमित्रानन्द
कौमुदीमित्रानन्द १० अङ्कों का 'प्रकरण' है । दश रूपकभेदों में नाटक के बाद सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण स्थिति प्रकरण की ही है। प्रस्तुत प्रकरण कवि रामचन्द्र के नाट्यकौशल का सुन्दर निदर्शन है।
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XVII
कौमुदीमित्रानन्द की संक्षिप्त कथावस्तु
प्रथम अङ्क - मित्रानन्द अपने मित्रों मैत्रेय एवं मकरन्द के साथ व्यापार करने के उद्देश्य से समुद्री यात्रा पर निकलता है, किन्तु नौका के बीच समुद्र में डूब जाने पर मैत्रेय के साथ एक फलक पर सवार होकर किसी प्रकार सात दिन पश्चात् एक द्वीप में पहुँचता है। उस निर्जन द्वीप में एक वृक्ष की शाखा पर झूलती और विलाप करती हुई एक अनुपम सुन्दरी युवती को देखकर दोनों आश्चर्यपूर्वक उसके विषय में विचार करने लगते हैं । उसी बीच वह युवती उठकर कहीं चली जाती है। दोनों उसको खोजने निकलते हैं तो रास्ते में उनकी भेंट एक संन्यासी - वेषधारी व्यक्ति से होती है जो उन्हें बतलाता है कि यह जलपति पाशपाणि का क्रीड़ाद्वीप है। इस द्वीप में प्रशान्तविरोध नामक एक आश्रम भी है जिसके कुलपति का नाम घोरघोण है। वह संन्यासी उन दोनों को कुलपति से मिलवाता है। वहीं पर वे पूर्वदृष्ट युवती को भी देखते हैं जो कुलपति की ही पुत्री कौमुदी है। उन दोनों को अत्यधिक धनवान् समझकर धूर्त लोभी कुलपति धन प्राप्ति की इच्छा से उनका पर्याप्त आदर-सत्कार
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