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________________ भूमिका XV महाकवि रामचन्द्र रसवादी कवि हैं। अपनी रचनाओं में उन्होंने रस के प्रति विशेष आग्रहभाव प्रदर्शित किया है। नाट्यदर्पण में रसकवियों की प्रशंसा करते हुए वे लिखते हैं- वही कवि वस्तुतः कवि है जिसके काव्य को पढ़कर मनुष्य भी काव्यरसरूपी अमृत का पान करने वाले बन जाते हैं और जिसकी वाणी नाट्य की रसलहरियों में चकराती हुई सी नृत्य करती है— स कविस्तस्य काव्येन मर्त्या अपि सुधान्धसः । रसोर्मिघूर्णिता नाट्ये यस्य नृत्यति भारती । । १ रस नाट्य का प्राण है— 'रसप्राणो नाट्यविधि:', अतः इसकी योजना कवि को यत्नपूर्वक करनी चाहिए । इस विषय में महाकवि की गर्वोक्ति है कि नये-नये शब्दों के दक्षतापूर्वक विन्यास से मधुर काव्यों की रचना करने वाले मुरारिप्रभृति न जाने कितने ही कवि हुए हैं, किन्तु नाट्य के प्राणस्वरूप रस की चरमानुभूति कराने में रामचन्द्र से इतर कोई निपुण नहीं है और यही कारण है कि अन्य कवियों की कृतियों की रसवत्ता तो इक्षु के समान क्रमशः क्षीणतर होती जाती है, किन्तु रामचन्द्र की सभी कृतियों की रसवत्ता उत्तरोत्तर बढ़ती ही जाती है नवभणितिवैदग्ध्यमधुरान् प्रबन्धानाधातुं कवीन्द्रा निस्तन्द्राः कति नहि मुरारिप्रभृतयः । ऋते रामान्नान्यः किमुत परकोटौ घटयितुं रसान् नाट्यप्राणान् पटुरिति वितर्को मनसि नः ।। प्रबन्धा इक्षुवत् प्रायो हीयमानरसाः क्रमात् । कृतिस्तु रामचन्द्रस्य सर्वा स्वादुः पुरः पुरः । । रामचन्द्र की कृतियाँ २ साहित्य जगत् में महाकवि रामचन्द्र प्रबन्धशतकर्ता के रूप में विख्यात हैं। 1 अपनी अनेक कृतियों में उन्होंने स्वयं को १०० प्रबन्धों का रचयिता बताया है। इस विषय में उन्होंने कौमुदीमित्रानन्द की प्रस्तावना में 'प्रबन्धशतविधाननिष्णातबुद्धिना .......' इत्यादि द्वारा स्पष्ट निर्देश किया है। निर्भयभीमव्यायोग की प्रस्तावना में भी उन्होंने 'प्रबन्धशतकर्तुर्महाकवेः रामचन्द्रस्य' कथन द्वारा स्वयं को १०० प्रबन्धों का कर्त्ता घोषित किया है, किन्तु इस सम्बन्ध में मुनि जिनविजयजी का मत १. ना० द०, पृ० ४ । २. कौ०मि०, १/३-४। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002080
Book TitleKaumudimitranandrupakam
Original Sutra AuthorRamchandrasuri
Author
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1998
Total Pages254
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Culture
File Size8 MB
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