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भूमिका
वातोद्धूतरजोमिलत्सुरसरित्सञ्जातपङ्कस्थलीदूर्वा चुम्बनचञ्चरा रविहयास्तेनातिवृद्धं
दिनम् । । "
अर्थात्, हे महाराज! आपकी दिग्विजय यात्रा के समय सैनिकों के शक्तिशाली अश्वों के कठोर खुरों से उड़ाई गयी धूलि के आकाश पर पहुँचने से वहाँ बने कीचड़ में दूब (घास) निकल आयी है जिसे खाने के लिए सूर्य के रथ में जुते घोड़े रुक जाते हैं और उन्हें गन्तव्य तक पहुँचने में विलम्ब हो जाता है। यही कारण है कि ग्रीष्म ऋतु में दिन बड़े हो जाते हैं। महाराज इस उत्तर से अत्यन्त प्रसन्न हुए। इसी प्रकार एक अन्य अवसर पर राजा से अणहिलपट्टन नगर के तत्क्षण वर्णन का आदेश प्राप्तकर महाकवि ने अत्यल्प काल में ही नगर का उत्कृष्ट पद्यबद्ध वर्णन कर डाला
एतस्यास्य पुरस्य पौरवनिताचातुर्यतानिर्जिता मन्ये हन्त ! सरस्वती जडतया नीरं वहन्ती स्थिता । कीर्तिस्तम्भमिषोच्चदण्डरुचिरामुत्सृज्य बाहोर्बलातन्त्रीकागुरुसिद्ध भूपतिसरस्तुम्बी निजां कच्छपीम् ।।
हे महाराज! ऐसा प्रतीत होता है मानो अणहिलपट्टन की नगरवधुओं के चातुर्य से पराजित हुई सरस्वती मूर्ख सी बनकर उनके सम्मुख पानी भरने लगी है । इसी कारण वह अपनी वीणा की तुम्बी को आपके सरोवर की कच्छपी के रूप में नीचे छोड़कर केवल वीणादण्ड को अपने कीर्तिस्तम्भ के रूप में हाथ में लेकर और मेघावली को तन्त्री बनाये हुए घूम रही है।
उक्त दोनों पद्य महाकवि रामचन्द्र ने सद्यः रचे थे जो उनकी उत्कृष्ट कवित्वशक्ति के परिचायक हैं। उनकी इसी प्रतिभा से प्रसन्न होकर महाराज जयसिंह ने उन्हें ‘कविकटारमल्ल' की उपाधि से विभूषित किया था।
XIII
रामचन्द्र समस्यापूर्ति के लिए भी विख्यात थे। उनके सम्मुख यदि कोई शब्द समस्यापूर्ति हेतु रखा जाता तो वे तत्क्षण उस शब्दविशेष के आधार पर पद्यरचना कर समस्यापूर्ति करने में दक्ष थे। ऐसी ही एक घटना का उल्लेख चरित्रसुन्दरगणि ने अपने महाकाव्य कुमारपालचरित में किया है। इसके अनुसार एक बार विश्वेश्वर कवि जब अणहिलपट्टन पहुँचे तो राजा कुमारपाल उनका आदर-सत्कार करके उन्हें आचार्य हेमचन्द्र की पाठशाला में ले गये। वहाँ आचार्य के शिष्यों की परीक्षा लेने
१. प्रबन्धचिन्तामणि, पृ० १०२ । २. वहीं, पृ० १०२ ।
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