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________________ १७६ कौमुदीमित्रानन्दरूपकम् व्यपोहार्थम्। कामयितरि जनयितरि भ्रातरि च पुरुषमात्रपरमन्तःकरणम्। तदलममुना वाग्विलासेन। सर्वथा कैतवं निन्द्यं प्रवदन्ति विपश्चितः। केवलं न विना तेन दुःसाधं वस्तु सिध्यति।।४।। ततो व्रज त्वं कामायतनम्। प्रवर्तय सर्ववनितासु विधीयमानं पूर्वमन्त्रितमेव कैतवप्रयोगम्। वयमप्येते प्रदोषानन्तरमागता एव। ___ (लम्बस्तनी निष्क्रान्ता।) __ (प्रविश्य) पुरुषः- देव! वध्ययोर्मध्यादेकः प्राप्तः। सिद्धाधिनाथ:- (सरभसम्) घातकस्तदितरो वा? पुरुषः- तदितरः। सिद्धाधिनाथ:- (पञ्चभैरवं प्रति) स एष मन्त्रोपचारकर्मणः प्रभावः। (पुनः पुरुषं प्रति) गत्वा समादिश लम्बस्तनीम, यथा-पञ्चबाणस्यापि व्यापारो इन सबके प्रति समान मनोभाव रखती हैं। अत: हमारी इस बातचीत से कोई लाभ नहीं। ज्ञानीजन छल-कपट को सर्वथा निन्दनीय बतलाते हैं, किन्तु कोई भी दुःसाध्य वस्तु उसके विना प्राप्त नहीं होती।।४।। अत: तुम अब काममन्दिर में जाओ और सभी युवतियों के साथ पूर्वविचारित कपटलीला प्रारम्भ करो। मै भी प्रदोषवन्दन के बाद आ ही रहा हूँ। (लम्बस्तनी निकल जाती है।) (प्रवेश कर) पुरुष- देव! दो वध्यपुरुषों में से एक मिल गया। सिद्धाधिनाथ- (शीघ्रतापूर्वक) प्रहार करने वाला या दूसरा? पुरुष- दूसरा । सिद्धाधिनाथ- (पञ्चभैरव से) यह उसी मन्त्रोपचारकर्म का प्रभाव है। (पुनः पुरुष से) जाकर लम्बस्तनी से कहो कि कामदेव का पूजन भी वध्यपुरुष के हाथ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002080
Book TitleKaumudimitranandrupakam
Original Sutra AuthorRamchandrasuri
Author
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1998
Total Pages254
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Culture
File Size8 MB
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