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________________ १४५ अष्टमोऽङ्कः (ततः प्रविशन्ति पातालभवनादागमनं नाटयन्त्य: पञ्चषा योषितः।) (योषितः कापालिकं प्रणम्य कौमुदी-सुमित्रयोः पादौ संस्पृशन्ति।) कापालिक:- (युवतीं प्रति) व्रज पातालभवनमेताभिः सह। मकरन्द:- भगवन्! एते अपि कौमुदी-सुमित्रे यामद्वयं पातालगृहमधितिष्ठताम्। कापालिक:- (स्वगतम्) प्रियं नः। (प्रकाशं) यद् भवते रोचते तदस्तु। (सर्वाः पातालभवनप्रवेशं नाटयन्ति।) कापालिक:- (विमृश्य) सार्थवाह! इदानीं विद्याधराकर्षणहोमसमयः, ततस्त्वया क्रियमाणं साहायकं किमपि मृगयामहे। मकरन्द:- प्रकृत्यैवाहमकुतोभयः, ततः स्वैरमादिशत यूयम्। कापालिक:- त्वया समाकृष्टकरालकरवालेन निष्कम्पमनसा होमशवस्य पुरतः स्थातव्यम्। होममण्डले च नापरस्य मन्त्रस्य वा दैवतस्य वा कस्यापि (तत्पश्चात् पाताल-भवन से आने का अभिनय करती हुई पाँच छः युवतियाँ प्रवेश करती हैं।) (स्त्रियाँ कापालिक को प्रणाम कर कौमुदी और सुमित्रा का चरण-स्पर्श करती हैं।) कापालिक- (एक युवती से) इनके साथ पाताल-भवन जावो। मकरन्द- भगवन्! ये दोनों कौमुदी और सुमित्रा भी दो रात पाताल-भवन में ही रहें। कापालिक- (मन में) हमारे लिए तो अच्छा ही है। (प्रकटरूप से) जैसी आपकी इच्छा हो वही हो। (सभी पाताल-भवन में प्रवेश का अभिनय करती हैं।) कापालिक- (सोचकर) सार्थवाह! यह विद्याधराकर्षण यज्ञ के होम का समय है, अतः तुम्हारी कुछ सहायता चाहता हूँ। मकरन्द- मैं तो स्वभाव से ही निर्भीक हूँ, अत: आप स्वेच्छया आदेशदें। कापालिक- तुम अपने ऊपर तानी हुई भयङ्कर तलवार से भयभीत हुए विना होमशव के सम्मुख स्थित रहना । यत: यज्ञमण्डप में अन्य किसी मन्त्र या १. 'लभुवमे ख। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002080
Book TitleKaumudimitranandrupakam
Original Sutra AuthorRamchandrasuri
Author
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1998
Total Pages254
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Culture
File Size8 MB
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