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________________ सप्तमोऽङ्कः १३१ (पुनर्विमृश्य स्वगतम्) सम्भवति तयोर्मध्यात् किमप्येषु मानुषेषु। (प्रकाशं सुमित्रां प्रति) भद्रे! किमभिधानाऽसि? सुमित्रा- अहं सुमित्ताभिहाणा। (अहं सुमित्राभिधाना।) पल्लीपति:- (कौमुदी प्रति) तव किमभिधानम्? स्थविर:- राजपुत्र! अस्याः कौमुदीत्यभिधानम्। पल्लीपति:- (स्वगतम्) संवदति भार्यानामधेयम्। (प्रकाशम्) किमभिधानः पतिरस्याः ? स्थविर:- एतद्धर्ता मित्रानन्दाभिधानः। पल्लीपतिः- (स्वगतम) कथमस्माभिरात्मीयानामेव मानुषाणामुपद्रवः कृतः? सार्थवाह:- भद्रे! कुतस्त्यस्ते भर्ता? मन में) हो सकता है कि पकड़े गये व्यक्तियों में उन दोनों में से कोई एक हो। (स्पष्टतः सुमित्रा से) भद्रे! तुम्हारा नाम क्या है? । सुमित्रा-मेरा नाम सुमित्रा है। पल्लीपति-(कौमुदी से) तुम्हारा नाम क्या है? स्थविर-राजपुत्र! इसका नाम कौमुदी है। पल्लीपति-(मन में) पत्नी का नाम तो यथानिर्दिष्ट ही बतला रहा है। (स्पष्ट रूप में) इसके पति का क्या नाम है? स्थविर-इसके पति का नाम मित्रानन्द है। पल्लीपति-(मन में) क्या हम लोगों ने आत्मीयजनों के साथ ही दुर्व्यवहार किया? सार्थवाह-भद्रे! तुम्हारा पति कहाँ का निवासी है? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002080
Book TitleKaumudimitranandrupakam
Original Sutra AuthorRamchandrasuri
Author
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1998
Total Pages254
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Culture
File Size8 MB
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