SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 185
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १३२ कौमुदीमित्रानन्दरूपकम् कौमुदी- कोउंगमंगलनिवासी मे भत्ता। (कौतुकमङ्गलनिवासी मे भर्ता।) सार्थवाह:- मैत्रेयो जीवति? कौमुदी- (स्वगतम्) जहा एस सव्वं पि जाणेदि तहा नूणमेस मयरंदो। (प्रकाशम्) जीवदि। (यथा एष सर्वमपि जानाति तथा नूनमेष मकरन्दः। जीवति।) सार्थवाह:- राजपुत्र! इयं मे भ्रातृजाया। स खलु मित्रानन्दो मे परमं मित्रम्। कौमुदी- (पल्लीपतिं प्रति) एसा मे बहिणिआ सुमित्ता मित्ताणंदतोसिदेण रयणायराहिवयणा एदस्स अदिट्ठस्स वि परिणेदुं पडिवादिदा वट्टदि। (एषा मे भगिनी सुमित्रा मित्रानन्दतोषितेन रत्नाकराधिपतिना एतस्यादृष्टस्यापि परिणेतुं प्रतिपादिता वर्तते।) पल्लीपति:- अयमस्माकं तर्हि जामाता। विवाहमङ्गलमप्यस्याः स्वदुहितुरस्माभिराधेयम्। (पुनर्लेखवाहकं प्रति) भद्र! व्रज त्वम्। विज्ञपय युवराजाय। कौमुदी- मेरे पति कौतुकमङ्गल नामक नगर के निवासी हैं। सार्थवाह- मैत्रेय जीवित है? कौमुदी-(मन में) जिस प्रकार यह सभी बातें जानता है उससे स्पष्ट है कि यह अवश्य मकरन्द ही है। (प्रकटरूप से) जीवित है। सार्थवाह- राजपुत्र! यह मेरी भ्रातृजाया है और वह मित्रानन्द तो मेरा परममित्र है। ___कौमुदी-(पल्लीपति से) यह मेरी बहन सुमित्रा है जिसका विवाह मित्रानन्द से प्रसन्न हुए रत्नाकरनरेश (विजयवर्मा) ने इस अपरिचित (मकरन्द) के साथ करने का निश्चय किया है। पल्लीपति-तब तो यह हमारा जामाता हुआ। अपनी इस पुत्री का शुभविवाह भी हमको ही करना चाहिए। (पुन: दूत से) भद्र! तुम जाओ और युवराज से कहो १. कोतुअ का Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002080
Book TitleKaumudimitranandrupakam
Original Sutra AuthorRamchandrasuri
Author
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1998
Total Pages254
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Culture
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy