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सप्तमोऽङ्कः
१२५ (प्रकाशं सकपटम्) यमदण्ड! यदि न मुञ्चति तदा व्यापादय बालकम्।
(यमदण्डः कृतकं कृपाणेन प्रणिहन्ति।) (वृद्धा पूत्कुर्वाणा कृपाणघातं शिरसा प्रतीच्छति।) स्थविर:- (तारस्वरम्) अब्रह्मण्यमब्रह्मण्यम्। सुमित्रा- (यमदण्डं प्रति) भाय! कीस एदं थेरि मारेसि? (भ्रातः! कस्मादेतां स्थविरां मारयसि?) पल्लीपति:- (सविस्मयम्)
अपत्यजीवितस्यार्थे प्राणानपि जहाति या। त्यजन्ति तामपि क्रूरा मातरं दारहेतवे।।७।। (पुन: सकरुणं यमदण्डं प्रति) मुश्चैनं वराकम्, अन्यतः कुतोऽपि द्रविणमपहरिष्यामः।
(प्रकट रूप से कपटपूर्वक) यमदण्ड! यदि नहीं छोड़ती है तो बालक को मार डालो।
(यमदण्ड बालक पर तलवार से प्रहार करता है।) (वृद्धा चीखती हुई तलवार के प्रहार को अपने शिर पर झेल लेती है।)
स्थविर-(उच्च स्वर में) घोर पाप, घोर पाप! सुमित्रा-(यमदण्ड से) भाई! क्यों इस वृद्धा को मार रहे हो? पल्लीपति-(आश्चर्यपूर्वक)
जो सन्तान के जीवन के लिए अपने प्राणों का भी परित्याग कर देती है, उस माता को भी क्रूर सन्तान स्त्री के लिए त्याग देते हैं।।७।।
(पुनः करुणापूर्वक यमदण्ड से) छोड़ दो इस बेचारे को, हम कहीं और से धन चुरा लेंगे।
१. भो ! कीस क।
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