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________________ १२१ सप्तमोऽङ्कः (यमदण्ड: करण्डकं प्रतिगृह्णाति।) (सर्वाः प्रतिभयेन वेपन्ते।) (पिङ्गलक: कौमुदी-सुमित्रयोराभरणानि गृह्णाति।) पल्लीपति:- सर्वेषामपि वस्त्राणि रक्षणीयानि। यमदण्ड:- वृद्धे! परिधानाञ्चलेन पिहितं किमिदम्? वृद्धा-न किं पि। (न किमपि।) (बालकः प्रतिभयेन मन्दं मन्दं रोदिति।) पल्लीपति:- कथमयं बालकस्वरः? (यमदण्डं प्रति) निरूपय बालको वा बालिका वा? सर्पकर्ण:- देव! बालकोऽयम्। पल्लीपति:- वृद्ध! कस्याऽयं तनयः? (यमदण्ड टोकरी ले लेता है।) (सभी भय से काँपते हैं।) __ (पिङ्गलक कौमुदी और सुमित्रा से आभूषण ले लेता है।) पल्लीपति-सभी के वस्त्र रख लिये जायें। यमदण्ड-वृद्धे! साड़ी के आँचल में छिपा हुआ यह क्या है? । वद्धा-कुछ भी नहीं। __ (बालक भय से धीरे-धीरे रोता है।) पल्लीपति-क्या यह बच्चे की आवाज है? (यमदण्ड से) देखो यह बालक है या बालिका। सर्पकर्ण-देव! यह बालक है। पल्लीपति-वृद्ध! यह किसका पुत्र है? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002080
Book TitleKaumudimitranandrupakam
Original Sutra AuthorRamchandrasuri
Author
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1998
Total Pages254
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Culture
File Size8 MB
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