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कौमुदीमित्रानन्दरूपकम्
(प्रविश्य सम्भ्रान्तः )
मङ्गलक : - देव! विपक्षावस्कन्दः प्राप्तः ।
विजयवर्मा (ससम्भ्रमम्) व्रजत स्वं स्वं स्थानं यूयम् । वयमिदानीमभ्यमित्री
यतामाधास्यामः । ।
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(इति निष्क्रान्ताः सर्वे । )
।। षष्ठोऽङ्कः समाप्तः । ।
( प्रवेश करके घबड़ाया हुआ )
मङ्गलक - देव! शत्रुओं ने आक्रमण कर दिया है।
विजयवर्मा - ( व्याकुल होकर) तुम सभी अपने-अपने स्थान पर जाओ । इस समय हम शत्रुओं का सामना करेंगे । ।
(इसके पश्चात् सभी निकल जाते हैं। )
।। षष्ठ अङ्क समाप्त । ।
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