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षष्ठोऽङ्कः विजयवर्मा
अपराधोऽत्र नास्माकं न च प्राचीनकर्मणाम्। किन्तु कामरतेस्तस्य पापतन्त्रस्य मन्त्रिणः।।१८।। (पुन: सविनयम्) युष्मदर्थमियं विधृता मैत्रेयेण वत्सा सुमित्रा, तदेनामस्मिन् पवित्रे पर्वणि परिणयत यूयम्।
मित्रानन्दः- अस्ति पुराऽपि मे कौमुदी नाम पत्नी, तदेतां मदीयो भ्राता मकरन्दः परिणेष्यते।
(नेपथ्ये सकोलाहलम्) सेनान्यः! सप्तकृत्वः स्थगयत निखिलान् हास्तिकैगोपुराणान्,
अधीयानश्ववाराः! प्रगुणयत बहिः सौप्तिकोपप्लवाय। पादातान्यावृणुध्वं वपुरतिविकटैः कङ्कटैयुद्धकेलि
श्रद्धावर्धिष्णुदास्तरलयत भटाः! संयुगं सांयुगीनाः।।१९।।
विजयवर्मा
इसमें न तो हमारा अपराध है और न ही आपके पूर्वसम्पादित कर्मों का, अपितु इसमें तो उस पापाचारी मन्त्री कामरति का अपराध है।।१८।।।
(पुन: विनयपूर्वक) पुत्री सुमित्रा को मैत्रेय ने आपके लिए ही रखा है। अत: इस शुभ अवसर पर आप इसका पाणिग्रहण करें।
मित्रानन्द-मेरी तो पहले से ही कौमुदी नाम की पत्नी है, तो इससे मेरा भाई मकरन्द विवाह करेगा।
(नेपथ्य में कोलाहलपूर्वक) हे सेनानायको! नगर के सभी द्वारों पर गजसैनिकों द्वारा सातगुना पहरा लगा दो; हे अश्वारोही वीरो! शत्रओं के रात में होने वाले आक्रमण का सामना करने के लिए अश्वसैनिकों को नगर के बाहर नियुक्त करो; हे पैदल सैनिको! अपने शरीर को अत्यन्त दृढ़ कवचों से ढक लो और हे युद्धक्रीड़ा में श्रद्धा के कारण सतत बढ़ने वाले पराक्रम से सम्पन्न युद्धकुशल शूरवीरो! युद्धभूमि की ओर कूच करो।।१९।।
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