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षष्ठोऽङ्कः
क्व नाम प्राणसंहारी सर्वाङ्गीणव्रणोदय: ? । क्व च मैत्रेयसम्पर्कः पर्ववल्लीप्ररोहभूः ? ।। ३ ॥ मङ्गलक :- किर्मदः कौतूहलम् ? अभिमुखवर्तिनि वेधसि पुण्यगुणावर्जितानि सर्वाणि । द्वीपान्तरस्थितान्यपि पुरः प्रधावन्ति वस्तूनि । । ४ । ।
तत् कथय क्व प्रस्थितोऽसि ?
मदनक:- देवेन भगवतो लोहितपाणे: पुरुषोपहारं कर्तुकामेन वैदेशिकस्य कस्यापि गवेषणाय प्रेषितोऽस्मि ।
मङ्गलकः - इदानीं किं करोति देवः ?
मदनक:- एष येक्षोपवने मैत्रेयेण सह किमपि जल्पन्नस्ति, तंत्र व्रज त्वम् । अहमपि यथादिष्टमादधामि ।
कहाँ एक ओर विजयवर्मा के सभी अङ्ग-प्रत्यङ्ग में इन प्राणान्तकारी व्रणों का उदय और कहाँ (दूसरी ओर ) पूर्णिमा में उत्पन्न (अत एव अमृतमयी) लता के उत्पत्तिस्थान जैसा यह मैत्रेय का मिलन ! ।। ३ ।।।
मङ्गलक - इसमें कौतूहल कैसा ?
भाग्य के अनुकूल होने पर तो पुण्य-गुण से अर्जित द्वीपान्तर में भी स्थित सभी वस्तुएँ तत्क्षण सम्मुख उपस्थित हो जाती हैं । । ४ । ।
तो बताओ कहाँ जा रहे हो?
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मदनक - भगवान् लोहितपाणि को पुरुषबलि प्रदान करने के इच्छुक मण्डलेश्वर ने मुझे किसी परदेशी के अन्वेषण के लिए भेजा है।
मङ्गलक - इस समय क्या कर रहे हैं मण्डलेश्वर ?
मदनक -- यक्षोद्यान में मैत्रेय के साथ कुछ वार्त्तालाप कर रहे हैं, तुम वहीं जाओ। मैं भी आदेशानुसार कार्य करता हूँ ।
१. किमिदं कौ° क । २. यक्षायतने ख । ३. ततो ख।
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