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पञ्चमोऽङ्कः
मित्रानन्द:-(प्रणम्य) भगवति ! यदि मया प्रसादिताऽसि तदा युवराजमुत्थापय।
(आकाशे) उत्तिष्ठ भोः उत्तिष्ठ।
कुमार:- (ससम्भ्रममुत्थाय) कथमयमियान् जनसम्पर्दः? अम्ब! किमद्य तातदर्शनमहोत्सवे शोकदुर्दिनान्थकारितवदनाऽसि? प्रयतस्व, व्रजामस्तातपादान् प्रणन्तुम्। राजा- (सानन्दं सबाष्पम्)
एह्येहि वत्स ! शीतांशुवंशमुक्तावचूल! माम्। दोया मृणालमित्राभ्यामालिङ्ग पितरं निजम्।।११।। कुमार:- कथं नेदीयांस एव तातपादाः? (उत्थाय प्रणमति।)
(राजा आलिङ्गय शिरसि चुम्बति।)
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मित्रानन्द-(प्रणाम करके) देवि! यदि आप मुझ पर प्रसन्न हैं, तो कुमार को होश में लाइए।
(आकाश में)
उठो हे (कुमार)! उठो। कुमार- (घबराहटसहित उठकर) यहाँ इतने लोगों की भीड़ किसलिए? हे माता! आज पितृदर्शन के महान् अवसर पर तुम्हारा मुखमण्डल मेघाच्छन्न दुर्दिन के समान शोक से मलिन क्यों है? धीरज रखो, अब हम पिताजी को प्रणाम करने जा रहे हैं।
राजा-(आनन्दाश्रु बहाते हुए)
आओ आओ पुत्र! चन्द्रवंश के लहराते हुए ध्वजवस्त्र! अपनी कमलनालसदृश कोमल भुजाओं से अपने पिता का आलिङ्गन करो।।११।। कुमार-क्या पिताजी समीपस्थ ही हैं? (उठकर प्रणाम करता है।)
(राजा आलिङ्गन करके उसके मस्तक को चूमते हैं।)
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