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________________ कौमुदीमित्रानन्दरूपकम् कामरति:- अरे ! प्रियमाणः कुशकाशानवलम्बसे? राजा- महाभाग! भूयोऽप्येतान्येवाक्षराणि श्रावय। मित्रानन्दः- अस्ति नः कुलक्रमागतः शतशो दृष्टप्रत्ययो विषापहारमन्त्रः। राजा-(प्रणम्य) परमेश्वर! तर्हि प्रसीद। प्रयच्छास्मत्कुलाय प्राणभिक्षाम्। अरे कालपाश ! द्रुततरमपनय बन्धनानि। (कालपाशस्तथा करोति।) (मित्रानन्द आसनविशेषमाधाय ध्यानं नाटयति।) (आकाशे) ब्रूहि भोः ! ब्रूहि, किमर्थं मां स्मृतवानसि? सर्वे- (ऊर्ध्वमवलोक्य सविस्मयम्) कथमियं भगवती विषदेवता जाङ्गुली स्वयं व्याहरति? कामरति-अरे! मरते समय तिनके का सहारा ले रहे हो? राजा-हे महाभाग! यह बात एक बार फिर सुनाइये। मित्रानन्द-हमारे पास कुल-क्रम से प्राप्त सैकड़ों बार प्रयुक्त प्रभावशाली विश्वसनीय विषनाशक मन्त्र है। राजा-(प्रणाम करके) हे परमेश्वर! तो आप हम पर कृपा करके हमारे वंश की रक्षा के लिए हमारे पुत्र को प्राणदान दीजिए। अरे कालपाश! बन्धनों को शीघ्र खोलो। (कालपाश वैसा ही करता है।) (मित्रानन्द विशेष मुद्रा में बैठकर ध्यान करने का अभिनय करता है।) (आकाश में) अरे! बोलो बोलो, तुमने किसलिए मेरा स्मरण किया? सभी-(ऊपर देखकर आश्चर्यपूर्वक) क्या ये स्वयं विषदेवता जाङ्गुली बोल रही हैं? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002080
Book TitleKaumudimitranandrupakam
Original Sutra AuthorRamchandrasuri
Author
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1998
Total Pages254
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Culture
File Size8 MB
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