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पञ्चमोऽङ्कः वत्स ! प्रसीद, कुलमण्डन! देहि वाचं, ___ हातुं कथं प्रवयसं पितरं क्रमस्ते? अस्तोकशोकजननी प्रतिरुध्य निद्रामुद्रां निजान् परिरभस्व चिराय बन्धून् ।।१०।।
(सर्वे तारस्वरं प्रलपन्ति।) मित्रानन्द:- कालपाश ! किमपि विज्ञपयितुकामोऽस्मि। कालपाश:- अमात्य ! तस्करोऽयं राजानं विज्ञपयितुमिच्छति। कामरति:- (साक्षेपम्) इदानीं विज्ञापनायाः कः समयः? राजा- अमात्य ! किमभिधत्ते चौर:? कालपाश:- देव ! तस्करोऽयं राजानं विज्ञपयितुमिच्छति। राजा- व्यापाद्यमानो लभते विज्ञापनामेकाम्, तदयं विज्ञपयतु वराकः। मित्रानन्द:- अस्ति देव ! नः कुलक्रमागतो विषापहारमन्त्रः।
हे पुत्र! प्रसन्न हो जाओ, हे कुल के रत्न! कुछ बोलो, क्यों वृद्ध माता-पिता को छोड़कर जाने के लिए व्यग्र हो रहे हो? अत्यधिक शोकप्रद इस मूर्छावस्था को त्याग कर चिरकाल तक अपने बन्धुजनों का आलिङ्गन करो।।१०।।
__(सभी जोर-जोर से रोते हैं।) मित्रानन्द-कालपाश! मैं कुछ कहना चाहता हूँ। कालपाश-अमात्य! यह चोर राजा से कुछ कहना चाहता है। कामरति-(क्रोधपूर्वक) यह भी कुछ कहने का समय है? राजा-अमात्य! चोर क्या कह रहा है? कालपाश-देव! यह चोर आप से कुछ कहना चाहता है।
राजा-मरने वाले को एक बात कहने का अवसर अवश्य मिलना चाहिए, अत: यह बेचारा जो कहना चाहता है, वह कहे।
मित्रानन्द-हे देव! हमारे पास कुल-क्रम से प्राप्त विष को दूर करने का मन्त्र है।
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