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________________ कौमुदीमित्रानन्दरूपकम् राजा- हा वत्स शशाङ्ककुलप्रदीप! कामिमां दुःस्थामवस्थामाप्तोऽसि? (ततः प्रविशति शिबिकाधिरूढः प्रणष्टसर्वक्रिय: कुमारो लक्ष्मीपतिः प्रलपन्ती पत्रलेखा च।) कामरति:- भो भोः शिबिकावाहिनः ! सिंहासनस्य पादपीठे विमुञ्चत कुमारम्। (शिबिकावाहिनस्तथा कुर्वन्ति।) पत्रलेखा- अज्जउत्त! पिच्छ पिच्छ, वच्छस्स कीदिसं जादं? (आर्यपुत्र ! पश्य पश्य, वत्सस्य कीदृशं जातम् ?) (राजा विलोक्य सहसा मूर्च्छति।) कामरति:- भो भोः पुरुषाः! त्वरध्वं त्वरध्वम्, उपनयध्वम् उपनयध्वं चन्दनशिशिराम्भः कदलीपत्रव्यजनानि च। _ (प्रविश्य पुरुषाश्चन्दनाद्यैरभिषिच्य राजानं वीजयन्ति।) राजा- (चेतनामास्थाय कुमारस्योपरि निपत्य च साक्रन्दम्) राजा-हाय पुत्र चन्द्रवंश के दीपक! यह किस दुरवस्था (सङ्कट) में पड़ गये हो? __ (तत्पश्चात् पालकी पर आरूढ़ निश्चेष्ट राजकुमार लक्ष्मीपति और विलाप करती हुई पत्रलेखा प्रवेश करती हैं।) कामरति-अरे अरे पालकी उठाने वालो! सिंहासन के पादपीठ (पैर रखने के स्थान) पर कुमार को रखो। (पालकीवाहक वैसा ही करते हैं।) पत्रलेखा-आर्यपुत्र! देखिये देखिये, पुत्र की क्या दशा हो गयी है? (राजा देखकर अकस्मात् मूर्च्छित हो जाते हैं।) कामरति-अरे अरे सेवको! जल्दी करो, जल्दी करो, चन्दनमिश्रित शीतल जल और केले के पत्ते के पझे ले आओ। (सेवकगण प्रवेश कर चन्दनादि के शीतल जल से सिक्त कर राजा को पंखा करते (हवा लगाते) हैं।) राजा-(सचेतन होकर और कुमार के ऊपर गिरकर रोते हुए) - - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002080
Book TitleKaumudimitranandrupakam
Original Sutra AuthorRamchandrasuri
Author
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1998
Total Pages254
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Culture
File Size8 MB
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