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________________ पञ्चमोऽङ्कः (कालपाश: साक्षेपं मित्रानन्दं केशैर्गृह्णाति।) (नेपथ्ये करुणध्वनिः।) राजा- (सभयमाकर्ण्य) अमात्य ! किमिदम्? (प्रविश्य) चेटी- (सोरस्ताडम्) भट्टा ! मुसिद म्हि मुसिद म्हि। (भर्तः ! मुषिताऽस्मि मुषिताऽस्मि।) राजा- चतुरिके ! विश्रब्धमभिधीयताम्। चेटी- भट्टा ! देवी पत्तलेहा विण्णवेदि । (भर्तः ! देवी पत्रलेखा विज्ञपयति ।) राजा- त्वरिततरं विज्ञपय-किमादिशति देवी? चेटी- कुमारो लच्छीवई उज्जाणे कुसुमावचायं कुव्वाणो भुअंगमेण दट्ठो विवन्नो अ, एदं देवी विन्नवेदि। (कुमारो लक्ष्मीपतिरुद्याने कुसुमावचायं कुर्वाणो भुजङ्गमेन दष्टो विपन्नश्च, एतद् देवी विज्ञपयति।) (कामरति कालपाश के कान में- ऐसा ही करो।) (कालपाश क्रोधपूर्वक मित्रानन्द का केश पकड़ लेता है।) (नेपथ्य में करुणध्वनि सुनायी पड़ती है।) राजा-(सुनकर भयपूर्वक) अमात्य! यह कैसी आवाज है? (प्रवेश कर) चेटी-(छाती पीटती हुई) स्वामी! लुट गयी, लुट गयी। राजा- चतुरिके! शान्त होकर कहो- क्या बात है? चेटी-स्वामी! महारानी पत्रलेखा कह रही हैं? राजा-शीघ्र बतलाओ- क्या कह रही हैं महारानी? www.jainelibrary.org Jain Education International For Private & Personal Use Only
SR No.002080
Book TitleKaumudimitranandrupakam
Original Sutra AuthorRamchandrasuri
Author
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1998
Total Pages254
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Culture
File Size8 MB
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