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कौमुदीमित्रानन्दरूपकम्
(नेपथ्ये)
इत इतः सिंहलेश्वरः ।
कामरतिः– कथमयमास्थानमुपसर्पति देवः ?
(प्रविश्य राजा सिंहासनमलङ्करोति ।)
( अमात्यः प्रणमति । )
राजा- -अमात्य ! प्रवर्तितः प्रविशतो वत्सस्य नगर (प्रवेश) महोत्सवः ? कामरतिः- अथ किम् ?
(प्रविश्य)
प्रतीहारः - देव! रत्नाकरनगराधिवासिना विजयवर्मणा मण्डलेश्वरेण प्रेषितः पुरुषो द्वारि वर्तते ।
राजा - (साशङ्कम् ) शीघ्रं प्रवेशय ।
( प्रविश्य पुरुष: प्रणमति । )
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(नेपथ्य में)
इधर से सिंहलनरेश! इधर से ।
कामरति - क्या महाराज महल की तरफ आ रहे हैं?
( राजा प्रवेश करके सिंहासनारूढ़ होते हैं । ) ( अमात्य प्रणाम करता है | )
राजा - अमात्य ! क्या पुत्र के नगरागमन का महोत्सव प्रारम्भ हो गया ? कामरति - और क्या?
(प्रवेश कर)
प्रतीहार - देव! रत्नाकरनगर के निवासी मण्डलेश्वर विजयवर्मा द्वारा भेजा गया पुरुष (दूत) द्वार पर खड़ा है।
राजा - (आशङ्कापूर्वक) शीघ्र अन्दर ले आओ ।
( पुरुष प्रवेश करके प्रणाम करता है | )
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