SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 133
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ८० कौमुदीमित्रानन्दरूपकम् (नेपथ्ये) इत इतः सिंहलेश्वरः । कामरतिः– कथमयमास्थानमुपसर्पति देवः ? (प्रविश्य राजा सिंहासनमलङ्करोति ।) ( अमात्यः प्रणमति । ) राजा- -अमात्य ! प्रवर्तितः प्रविशतो वत्सस्य नगर (प्रवेश) महोत्सवः ? कामरतिः- अथ किम् ? (प्रविश्य) प्रतीहारः - देव! रत्नाकरनगराधिवासिना विजयवर्मणा मण्डलेश्वरेण प्रेषितः पुरुषो द्वारि वर्तते । राजा - (साशङ्कम् ) शीघ्रं प्रवेशय । ( प्रविश्य पुरुष: प्रणमति । ) Jain Education International (नेपथ्य में) इधर से सिंहलनरेश! इधर से । कामरति - क्या महाराज महल की तरफ आ रहे हैं? ( राजा प्रवेश करके सिंहासनारूढ़ होते हैं । ) ( अमात्य प्रणाम करता है | ) राजा - अमात्य ! क्या पुत्र के नगरागमन का महोत्सव प्रारम्भ हो गया ? कामरति - और क्या? (प्रवेश कर) प्रतीहार - देव! रत्नाकरनगर के निवासी मण्डलेश्वर विजयवर्मा द्वारा भेजा गया पुरुष (दूत) द्वार पर खड़ा है। राजा - (आशङ्कापूर्वक) शीघ्र अन्दर ले आओ । ( पुरुष प्रवेश करके प्रणाम करता है | ) For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002080
Book TitleKaumudimitranandrupakam
Original Sutra AuthorRamchandrasuri
Author
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1998
Total Pages254
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Culture
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy