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पञ्चमोऽङ्कः विनयन्धरः - सर्वमचिरादाचरामि। (इत्यभिधाय निष्क्रान्तः।) कामरति:- (पुनर्विमृश्य) कोऽत्र भोः?
(प्रविश्य) शिखण्ड:- आदिशतु मन्त्री। कामरति:- अद्य किल नगरोधानमधिवसतः कुमारस्य लक्ष्मीपतेरभिमुखं मुषितान्यभूप
लक्ष्मीस्वयङ्ग्रहमहाहिलैकबाहुः। मार्गं कियन्तमपि सैन्यवृतो यियासुः
श्रीसिंहलावनिवधूपरमेश्वरोऽयम्।।२।। ततो गत्वा ब्रूहि गजसैन्याधिपतिं पुण्डरीकम्-यथा करटिघटांप्रगुणय, विशेषतश्च जयमङ्गलाभिधानं गजराजम्, हरिषेणं च वाजिसैन्याधिपतिं वाजिसेनासन्नहनाय समादिश।
(शिखण्ड: प्रणम्य निष्क्रान्तः।)
विनयन्धर- सभी कार्य शीघ्र सम्पन्न करता हूँ। (यह कहकर वह चला जाता है।) कामरति-(पुनः सोचकर) अरे! यहाँ कौन है?
(प्रवेश कर) शिखण्ड-मन्त्रिवर! आदेश दें।
कामरति-आज नगर के उद्यान में स्थित राजकुमार लक्ष्मीपति के सम्मुख अन्य शत्रु राजाओं से अपहृत लक्ष्मी को स्वयं ग्रहण करने में समर्थ भुजा वाले और मार्ग में कुछ दूर तक विना सैनिकों के ही चलने की इच्छा वाले सिंहलद्वीप की पृथ्वीरूपिणी वधू के पति महाराज विक्रमबाहु आने वाले हैं।।२।।
तो जाकर गजसेनाधिपति पुण्डरीक से कहो कि गजसमूह को और विशेषत: जयमङ्गल नामक गजराज को सुसज्जित करे और अश्वसेनाध्यक्ष हरिषेण को अश्वसेना को तैयार करने का आदेश दो।
(शिखण्ड प्रणाम करके निकल जाता है।) १. हर्षेण च वाजिनं सैन्या क.।
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